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विमाल होधिनी सीता : : :.::.:. ... ... .. में या ( आसणे वा ) आसन में या ( सहाए वा ) सभा में या ( संवाहे वा ) संवाह में या ( सण्णिवेसे वा ) सनिवेश में या ( तिणं वा ) तृण या { कटुं वा ) काष्ठ या ( वियडिं वा) विकृति या ( मणि वा) मणि या ( खेत्ते वा खले वा ) खेत में या खलियान में ( जले वा ) जल में या ( थले वा ) स्थल में या ( पहे वा ) पथ में या ( उप्पहे वा ) उन्मार्ग में या ( रपणे वा ) रण में या ( अरपणे वा ) अरण्य में या ( णटुं वा ) नष्ट या ( पमुटुं वा ) प्रनष्ट या ( पडिदं वा अपडिदं वा ) पतित या अपतित ( सुणिहिदं वा दुण्णिाहिदं वा ) अच्छी तरह से रखी हुई या नहीं रखी हुई या ( अप्पं वा बहुं वा ) थोड़ी या बहुत या ( अणुयं वा थूलं वा ) छोटी या बड़ी या ( सचित्तं वा अचित्तं वा) सचित्त या अचित्त या ( मज्झत्थं वा बहित्यं वा) भीतर रखी हो या बाहर रखी हो ( अवि दंतंतर-सोहणणिमित्तं ) दाँत के मध्य लगी को शोधन करने के निमित्त भी ( वि णेव सयं अदत्तं गेण्हिज्ज ) कभी स्वयं बिना दिया ग्रहण न करे ( णो अण्णेहि अदत्तं गेहाविज्ज ) न अन्य जीवों से बिना दिया ग्रहण करावे और ( णो अण्णेहि अदत्तं गेण्हिज्जंतं वि समणुमणिज्ज ) न अदत्त ग्रहण करने वाले की अनुमोदना ही करे । ( भंते ! ) हे भगवन् ! (तस्स ) उस तीसरे अचौर्याणुव्रत में लगे दोषों ( अइचारं ) अतिवार का ( पडिक्कमामि ) मैं प्रतिक्रमण करता हूँ ( जिंदामि ) उन दोषों की निंदा करता हूँ/ स्वयं में पश्चात्ताप करता हूँ। गरहामि ) गर्दा करता हूँ.गुरुदेव निंदा की साक्षीपूर्वक दोषों की आलोचना करता हूँ ( अप्पाणं वोस्सरामि ) आत्मा से उन अपराधों को छोड़ता हूँ, त्याग करता हूँ।
भावार्थ—हे भगवन् ! द्वितीय महाव्रत से भिन्न तृतीय अचौर्य महाव्रत में स्थूल और सूक्ष्म अदत्तादान की जीवनपर्यन्त के लिये मन-वचन-काय से त्याग करता हूँ। अदत्तादान से विरति स्वरूप उस अचौर्य महाव्रत की क्षति को करने में कारणभूत देश में, ग्राम में, नगर में, खेट में, कर्वट, मडंब, पट्टन, द्रोणमुख, घोष, आसन, सभा, संवाह और सनिवेश इन जनपद समूह के आश्रयभूत प्रदेशों में तथा खेत में, खलियान में, जल में, स्थल में, मार्ग में, उन्मार्ग में, रण में, अरण्य इन स्थानों में, नष्ट, प्रनष्ट. पतित, अपतित, सुनिहित अर्थात् अच्छी तरह से रखी हुई, दुनिहित,