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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका जुआ, वेश्याव्यसनादि सात व्यसनों का त्यागी, पाँच अणुव्रत से युक्त, तीन गुणव्रत, चार शिक्षाव्रत रूप सात शीलों से परिपूर्ण होता है। निर्दोष श्रावक व्रत पालने का फल
जो एदाई वदाई धरेइ, सावया सावियाओ वा, खुहुय खुड्डियाओ वा, दह- अट्ठ- पंच, भवणवासिय वाणविंतर जोइसिय, सोहम्मीसाणदेवीओ वदिक्कमित्तु उवरिम- अण्णदर महड्डियासु देवेसु उववज्र्ज्जति ।
अर्थ – जो श्रावक-श्राविका अथवा क्षुल्लक क्षुल्लिका इन बारह व्रतों को धारण करते हैं, वे दस प्रकार के भवनवासी, आठ प्रकार के वाण व्यन्तर, पाँच प्रकार के ज्योतिषी देवों, सौधर्म- ईशान स्वर्ग की देवियों का व्यतिक्रम अर्थात् उल्लंघन करके उपरिम अन्यतर महर्द्धिक वैमानिक देवों में उत्पन्न होते हैं ।
तं जहा- सोहम्मीसाण - सणक्कुमार- माहिंद-अंभ-बंधुत्तर-लांतव कापि सुक्क - महासुक्क सतार सहस्सार आगत- पायात - आरण- अच्चुतकप्पेस उववज्जति ।
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अर्थ - उसी को कहते हैं- सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लांतव, कापिष्ठ, शुक्र, महाशुक्र, सतार, सहस्रार, आनत, प्रानत, आरण और अच्युत देवों में उत्पन्न होते हैं ।
अडयंबर- सत्यधरा कडयंगद बद्धनउडकय सोहा । भासुरवर बोहिधरा देवा य महड्डिया होंति । । १ । । उक्करसेण दो तिपण भव- गहणाणि, जहणणेण सत्तट्ठ- भवगहणाणि तदो सुमाणुसत्तादो सुदेवत्तं, सुदेवतादो- सुमाणुसतं, तदो साइहत्या, पच्छा - णिग्गंधा होऊण, सिज्यंति, कुज्झति, मुंचति, परिणिव्वाणयंति, सव्वदुक्खाणमंत करेति । जाव अरहंताणं, भयवंताणं, णमोक्कारं करोमि, पज्जुवासं करोमि, तावकालं पावकम्मं दुच्चरियं वोस्सरामि ।
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अर्थ- वे निर्दोष श्रावक के व्रतों का पालन करने वाले भव्य जीव महर्द्धिक देवों में उत्पन्न होते हैं तथा उत्कृष्ट से दो या तीन भव संसार में लेते हैं, जघन्य से सात-आठ भवों को वे ग्रहण करते हैं, पश्चात् वे सुमनुष्यत्व से, सुदेवत्व, सुदेव से सुमानुष्य में उत्पन्न हो पश्चात् – निर्ग्रन्थ /
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