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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका प्रायः प्रश्नसहः प्रभुः परमनो हारी परानिन्दया । ब्रूयाद्धर्मकथां गणी गुणनिधिः, प्रस्पष्ट मिष्टाक्षरः ।। ६ ।।
अन्वयार्थ—जो ( प्राज्ञ: ) बुद्धिमान हैं ( प्राप्तसमस्तशास्त्रहृदयः ) समस्त शास्त्रों के रहस्य के ज्ञाता है ( प्रव्यक्तलोकस्थितिः ) लोकव्यवहार के उत्तमरीति से जानने वाले अथवा लोक स्थिति के प्रकट ज्ञाता हैं ( प्रास्ताश: ) संसार में निस्पृह हैं ( प्रतिभापरः ) समयानुसार द्रव्य-क्षेत्र-काल के परख/ आगे-आगे होने वाले शुभाशुभ को जानने में प्रतिभासम्पन्न ( प्रशमवान् ) राग-द्वेष रहित ( प्रागेव दृष्टोत्तरः ) प्रश्नों के उत्तर पहले ही जिनके मन में तैयार रहते हैं ( प्राय: प्रश्नसहः ) किसी के द्वारा बहुत प्रश्नों के पूछे जाने पर भी जिन्हें कभी क्रोध नहीं आता ( प्रभुः ) सब लोगों पर जिनका प्रभाव है ( परमनोहारी ) दूसरों के मन को जो हरने वाले हैं ( पर अनिन्दया ) दूसरों में निन्दा से रहित हैं ( धर्मकथां ब्रूयाद् ) धर्मकथा को कहने वाले हैं ( गुणनिधिः ) गुणों के खानि हैं ( प्रस्पष्ट मिष्टाक्षर; ) अच्छी तरह स्पष्ट व मधुर वाणी जिनकी है ऐसे गुणों से युक्त ( गणी ) आचार्य परमेष्ठी होते
भावार्थ विद्वान्, समस्त शास्त्रों के मर्मज्ञ, लोकज्ञ, निस्पृह, प्रतिभावान। समय सूचकतामें पारंगत, समभावी, प्रश्नों के पूर्व उत्तर ज्ञाता, बहु प्रश्नों को सहने में समर्थ, दूसरों के मन को हरने वाले/मनोज्ञ, पर-निन्दा से रहित, मधुर व स्पष्ट वक्ता, गुण निधि ऐसे आचार्य परमेष्ठी होते हैं।
श्रुतमविकलं शुद्धा वृत्तिः परप्रतिबोधने । परिणतिरुरुयोगो मार्ग प्रवर्तन सविधी ।। बुधनुतिरनुत्सेको, लोकज्ञता मृदुताऽस्पृहा । यतिपतिगुणा यस्मिन्नन्ये च सोऽस्तु गुरुः सताम् ।। ७ ।।
अन्वयार्थ ( श्रुतं अविकलं ) पूर्ण ज्ञान ( शुद्धा वृत्तिः ) शुद्ध आचरण ( पर प्रतिबोधने वृत्ति ) दूसरों को उपदेश देने में प्रवृत्ति ( परिणतिरुरुद्योगो मार्ग प्रवर्तन सद्विधौ ) भव्यजीवों को समीचीन मार्ग में लगाने में विशेष पुरुषार्थ करना ( बुधनुतिः ) विद्वानों से पूज्य ( अनुत्सेकः ) मार्दव भावी ( लोकज्ञता ) लोकव्यवहार के ज्ञाता ( मृदुता ) कोमलता ( अस्पृहा ) निस्पृहता ( गुणा ) गुण ( यस्मिन् ) जिनमें हैं ( यतिपति स: ) वह मुनियों