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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका अन्वयार्थ ( अमर पूज्य: ) देवों से पूज्य भगवान् वर्धमान ने ( उप्रै: तपोविधानैः ) उग्र तपों के विधान से ( द्वादश-वर्षाणि ) बारह वर्ष तक ( ग्राम-पुर-खेट-कर्वट-मटम्ब-घोषा-करान् ) ग्राम, पुर, खेट, कर्वट, मटम्ब, घोष और आकर आदि में ( प्रविजहार ) अच्छी तरह। प्रकष्ट विहार किया।
भावार्थ-देव-इन्द्र आदि जीवों से पूजित वीर भगवान् ने उग्र-उग्र तपश्चरण करते हुए ग्राम, पुर, खेट आदि विभिन्न स्थानों पर बारह वर्षों तक निर्विघ्न विहार किया।
प्राम--जो स्थान कँटीली बाड़ी से वेष्टित होता है, उसे ग्राम कहते हैं ।
पुर-चार गोपुरों से शोभा को प्राप्त तथा कोट से वेष्टित हो उसे पुर कहते हैं।
खेट-जो ५५ नदी व पर्वत से युक्त हो से खेट कहते हैं। कर्वट—जो पर्वत से युक्त हो उसे कर्वट कहते हैं। मटंब-जो पाँच सौ ग्रामों से सम्बद्ध हो उसे मटम्ब कहते हैं। घोष—अहीरों की बस्ती को घोष कहते हैं।
आकर--सोना-चाँदी-रत्न आदि की खानि को आकर कहते हैं । ( यहाँ उपलक्षण से द्रोण-पत्तन-संवाहन आदि का भी ग्रहण होता है )
द्रोण-दो पर्वतों के बीच में बसा नगर द्रोण कहलाता है। पत्तन-समुद्र-तट पर बसा नगर पत्तन कहलाता है। संवाहन-पर्वत पर बसा नगर संवाहन कहलाता है। ऋजुकूलायास्तीरे शाल्मद्रुम संश्रिते शिलापट्टे । अपराह्ने षष्ठेनास्थितस्य खलु भिकानामे ।।११।।
अन्वयार्थ-( ऋजुकूलायाः तीरे ) ऋजुकूला नदी के किनारे पर ( खलु जृम्भिकाग्रामे ) जृम्भिका नामक ग्राभ्य में ( शाल्पद्रुम संश्रिते शिलापट्टे ) शालवृक्ष के नीचे स्थित शिलापट्ट पर ( अपराह्ण षष्ठेनास्थितस्य ) अपराह्न काल में दो दिन का उपवास ग्रहण कर विराजमान हो गए।
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