Book Title: Vimal Bhakti
Author(s): Syadvatvati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 440
________________ ४३६ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका देव ८. व्यन्तर देव ९. ज्योतिषी देव १०. कल्पवासी देव ११. मनुष्य और तिर्यच मी ( नयन्ति ) नमस्कार करते हैं ( तस्मै ) उन ( त्रिभुवनप्रभवे ) तीन लोक के स्वामी ( जिनाय ) जिनेन्द्रदेव के लिये ( नमः ) नमस्कार हो। भावार्थ-समवशरण में १. मुनि २, कल्वपवासिनी देवियाँ ३. आर्यिका ४. ज्योतिषी देवियाँ ५. व्यन्तर देवियां ६. भवनवासी देवियों ७. भवनवासी देव ८. व्यन्तर देव ९. ज्योतिषी देव १०. कल्पवासी देव ११. मनुष्य १२. तिर्यञ्च ये १२ समाएँ होती हैं। समवशरण में आठ प्रातिहार्य भाषा-प्रभा- वलयविष्टर-पुष्पवृष्टिः, पिण्डिगुमस्त्रिदशदुन्दुभि-चामराणि । छत्रत्रयेण सहितानि लसन्ति यस्य, तस्मै नम-स्त्रिभुवन-प्रभवे जिनाय ।।४।। अन्वयार्थ ( यस्य ) जो जिनेन्द्रदेव ( भाषा-प्रभावलय-विष्टरपुष्पवृष्टिः पिण्डिद्रुमः त्रिदशदुंदुभि चामराणि-छत्रत्रयेण ) दिव्यध्वनि, भामंडल, सिंहासन, पुष्पवृष्टि, अशोकवृक्ष, देवदुंदुभि ६४ चँवर, तीन छत्र रूप आठ प्रातिहार्योंसे ( सहितानि ) सहित हो ( लसंति ) शोभा को प्राप्त हो रहे हैं ( तस्मै ) उन ( त्रिभुवनप्रभवे ) तीन लोक के नाथ (जिनाय ) जिनेन्द्रदेव के लिये ( नम: ) नमस्कार हो।। भावार्थ-समवशरण में जिनेन्द्रदेव १. दिव्यध्वनि २. भामण्डल ३. सिंहासन ४. पुष्पवृष्टि ५. अशोकवृक्ष ६. देव-दुंदुभि ७. चामर और ८. तीन छत्र ये आठ प्रातिहार्य शोभायमान होते हैं। समवसरण में अष्टमंगलद्रव्य शृंगार-ताल-कलश-ध्वजसुप्रतीक श्वेतातपत्र-वरदर्पण-वामराणि । प्रत्येक-मष्टशतकानि विभान्ति यस्य, तस्मैनम-स्त्रिभुवन-प्रभवेजिनाय ।।७।। अन्वयार्थ--( यस्य ) जो त्रिलोकीनाथ ( शृंगार-ताल-कलश-ध्वज

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