Book Title: Vimal Bhakti
Author(s): Syadvatvati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 441
________________ : विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ४३७ सुप्रतीक- श्वेत-आतपत्र- वरदर्पण - चामराणि ) झारी, पंखा, कलश, ध्वजा, स्वस्तिक, सफेद तीन छत्र श्रेष्ठ दर्पण, ६४ चॅवर इन ( प्रत्येकम् अष्टशतकानि ) प्रत्येक मंगल द्रव्य १०८ १०८ से ( विभांति ) शोभा को प्राप्त हैं ( तस्मै ) उन ( त्रिभुवन प्रभवे ) तीन लोक के नाथ (जिनाय ) जिनदेव के लिये ( नमः ) नमस्कार हो । भावार्थ- समवशरण में जिनदेव झारी, पंखा, कलश, ध्वजा, स्वस्तिक, सफेद तीन छत्र, निर्मल दर्पण और ६४ चँवर ये ८ मंगलद्रव्य सुशोभित रहते हैं । - समवसरण में अन्य मंगलसमाग्री स्तंभ- प्रतोलि-निधि मार्ग तडाग- - वापी 2 क्रीडाद्रि-धूप घट- तोरण-नाट्य- शालाः । स्तूपाश्च चत्य-तरवो सिर तस्मै नम - स्त्रिभुवन प्रभवे जिनाय ॥१८॥ अन्वयार्थ - (यस्य) जिनकी समवशरण सभा में (स्तंभ- प्रतोलिनिधि-मार्ग-तडाग वापी- क्रीडाद्रि-धूपघट तोरण - नाट्यशाला स्तूपाः च चैत्यतरवः ) मानस्तंभ, गोपुर, नवनिधि, मार्ग/ रास्ते, तालाब, वापिका, क्रीड़ापर्वत, धूपघट, तोरण, नाट्यशालाएँ और अनेक प्रकार के स्तूप तथा चैत्यवृक्ष ( विलसंति ) शोभा को प्राप्त हो रहे हैं ( तस्मै ) उन (त्रिभुवनप्रभवे ) तीनलोक के स्वामी (जिनाय ) जिनेन्द्रदेव के लिये ( नमः ) नमस्कार हो । भावार्थ- समवशरण सभा में मानस्तम्भ, गोपुर, नवनिधि, मार्ग, तालाब, वापिकाएँ, क्रीड़ापर्वत, धूपघट, तोरण, नाट्यशालाएँ और अनेक स्तूप चैत्यवृक्ष सुशोभित रहते हैं। १४ रत्नों के स्वामी से वन्दनीय - सेनापति स्थपति हर्म्यपति द्विपाश्व, - स्त्री- चक्र - चर्म मणि - काकिणिका - पुरोधाः । छत्रासि - दंडघतयः प्रणमन्ति यस्य, तस्मै नमस्त्रिभुवन प्रभवे जिनाय ।। ९ ।।

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