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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका अन्वयार्थ—(खवियघणघाइकम्मा ) क्षय कर दिया है अत्यंत दुष्ट ऐसे घातिया कर्मों का समूह जिसने जो ( चउत्तीसा अतिसयविसेसपंचकल्लाणा ) ३४ अतिशय विशेष व गर्भादि पंचकल्याणक से युक्त हैं ( अट्ठवर पाडिहेरा ) उत्कृष्ट आठ प्रातिहार्यों को प्राप्त हुए है ऐसे ( अरिहंता ) अर्हन्त परमेष्ठी ( मज्झं ) मेरे लिये ( मंगला ) मंगल करो।
भावार्थ-जिन्होंने दुष्कर चार घातिया कर्मों का क्षय कर दिया है। जो जन्म के १०५ केवलज्ञान के, १६: लाथा देवका १३ अतिशय इस प्रकार ३४ अतिशयों को प्राप्त हुए हैं, देवों ने जिनके गर्भादि पाँच कल्याणक किये हैं, जो आठ प्रातिहार्य से सहित हैं ऐसे अरहंत परमेष्ठी मेरे लिए मंगल करें । मेरे लिये मंगलस्वरूप हों।
अञ्चलिका इच्छामि भंते ! णंदीसर भत्ति काउस्सग्गो कओ तस्सालोचेउं । गंदीसरदीवम्मि, चउदिस विदिसासु अंजण-दधिमुह-रदिकर'-पुरुणगवरेसु आणि जिणचेइयाणि ताणि सख्याणि तिसुवि लोएसु भवणवासिय-वाणवितरजोइसिय-कप्पवासिय-त्ति चविहा देवा सपरिवारा दिव्वेहि पहाणेहिं, दिव्वेहिं गंधेहिं, दिव्येहिं अक्खेहि, दिव्धेहिं पुष्फेहि, दिव्वेहि चुण्णेहि, दिव्वेहिं दीवेहि, दिव्येहिं धूवेहि, दिव्वेहिं वासेहि, आसाढ़-कात्तियफागुणमासाणं अट्ठमिमाई, काऊण जाब पुषिणमंति णिच्चकालं अच्वंति, पुज्जति, वंदंति, णमंसंति । णंदीसरमहाकल्लाणपुज्जं करति अहमवि इह संतो तत्थासंताइयं णिच्चकालं अच्चमि, पुज्जेमि, यंदामि, णमस्सामि, दुक्खक्खओ, कम्मक्खओ, बोहिलाहो सुगइ-गमणं, समाहिमरणं, जिणगुणसंपत्ति होउ मज्झं।
अर्थ--( भते ! ) हे भगवन् ! ( गंदीसरभत्ति काउस्सग्गो कओ) मैंने नन्दीश्वर भक्ति का कायोत्सर्ग किया ( तस्स आलोचेउं इच्छामि ) तत्सम्बन्धी आलोचना करने की इच्छा करता हूँ ( गंदीसरदीवम्मि ) नन्दीश्वरद्वीप में ( चउदिस विदिसासु ) चारों दिशाओं, विदिशाओं में { अंजण-दधिमुहरदिकर-पुरुणगवरेसु ) अञ्जनगिरि, दधिमुख व रतिकर नामक श्रेष्ठ पर्वतों में ( जाणि जिणचेइयाणि ) जितनी जिन प्रतिमाएँ हैं ( ताणि सव्वाणि ) उन सबको ( तिसुवि लोएसु ) त्रिलोकवी (भवणवासिय-वाणवितरजोइसिय-कप्पवासिय-त्ति चउविहा देवा सपरिवारा ) भवनवासी, व्यन्तर,