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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
४३५ इस प्रकार १. चैत्य प्रसाद भूमि २. खातिका भूमि ३. लताभूमि ४. उद्यानभूमि ५, ध्वजा भूमि ६. कल्पवृक्ष भूमि और ७. गृहांग भूमि के बाद स्फटिक मणि के कोट के आगे बारह सभाएँ हैं। उसके बाद ३ मेखला व कमलयुक्त सिंहासन है उस सिंहासन पर चार अंगुल्न अधर बैठकर तीर्थंकर भगवान् उपदेश देते हैं । इस प्रकार की शोभा से सुशोभित जिन अरहंत देव की सभा है उन तीन लोक के स्वामी जिनदेव के लिये नमस्कार हो ।
समवशरणसभा में १० प्रकार की ध्वजाएँ माला-मृगेन्द्र-कमलाम्बर वैनतेय.
मातंगगोपतिरथांगमयूरहंसाः । यस्य ध्वजा विजयिनो भुवने विभान्ति,
तस्मै नम-स्त्रिभुवन-प्रभवे जिनाय ।। ६ ।। अन्वयार्थ—( यस्य विजयिनः ) जिन जितेन्द्रिय अरहंत देव का समवशरण ( मालामृगेन्द्रकमलाम्बर वैनयतेय मातंग गोपतिरथांग मयूरहंसा ) माला, मृगेन्द्र, कमल, वस्त्र, गरुड़, हस्ति, बैल, चक्रवाल/चकवा पक्षी, मोर व हंस इन चिह्नों युक्त १० प्रकार की ( ध्वजा ) ध्वजाओ से ( भुवने ) लोक में ( विभान्ति ) सुशोभित हैं । तस्मै ) उन ( त्रिभुवनप्रभवे ) तीन लोक के स्वामी ( जिनाय ) जिनदेव के लिये ( नमः ) नमस्कार हो।
भावार्थ-समवशरण सभा में “मृगेन्द्र, कमल, वस्त्र, गरुड़, हस्ति, बैल, चकवा, मोर और हंस ये दस प्रकार की बजाएँ सुशोभित होती हैं।
समवशरण की १२ सभा निध-कल्प-वनिता-व्रत्तिका भ- भौम,
नागस्त्रियो भवन- भौम-भ- कल्पदेवाः । कोष्ठस्थिता नृ-पशवोऽपिनमन्ति यस्य,
तस्मै नम-स्त्रिभुवन-प्रभवे जिनाय ।।५।। अन्वयार्थ---( यस्य ) जिनके चरण-कमलों में ( कोष्ठस्थिता ) बारह सभाओं में स्थित ( निग्रंथकल्पवनितात्तिका भमौम नागस्त्रियों भवन भौमभ-कल्पदेवाः नृ-पशवः अपि ) १. मुनि २. कल्पवासिनी देवियाँ ३. आर्यिका ४. ज्योतिषी देवियाँ ५. व्यन्तर देवियाँ ६. भवनवासी देवियाँ ७. भवनवासी