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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका कुलाचल और इष्वाकार पर्वतों पर ( च ) तथा ( कुरुषु ) देवकुरु-उत्तरकुरु में ( षड्विंशत्या अधिकानि त्रिशतानि तानि जिनभवनानि ) वे अकृत्रिम . चैत्यालय छब्बीस अधिक तीन सौ—३२६ हैं।
भावार्थ—पाँच मेरु सम्बन्धी अस्सी वक्षार पर्वतों पर ८०, बीस गजदन्तों पर २०, रुचकगिरि पर ४, कुण्डलगिरि पर ४, एक सौ सत्तर रजताचलों पर १७०, मानुषोत्तर पर ४, तीस कुलाचलों पर ३०, इध्वाकार पर्वतों पर ४, तथा पाँच विदेह सम्बन्धी, पाँच उत्तर कुरु, पाँच देवकुरु के १० इस प्रकार सब मिलाकर ३२६ अकृत्रिम चैत्यालय हैं। [ इनमें पाँच मेरु सम्बन्धी ८० तथा नन्दीयर संबंधी ५२ चैत्यालय मिलाने कुल ४५८ अकृत्रिम चैत्यालय हैं ]
विशेष—एक-एक विदेह मे क्षेत्र में १६-१६ वक्षारगिरि तथा ४-४ गजदंत हैं अत: सौ पर्वतों पर १०० अकृत्रिम जिनालय हैं । ढाई द्वीप में १७० कर्मभूमियाँ हैं उनमें १७० ही विजया पर्वत हैं अत: उन पर १७० अकृत्रिम चैत्यालय हैं । जम्बूद्वीप में ६ कुलाचल, धातकीखंड में १२ और पुष्करार्द्ध में १२ कुलाचल हैं, सब मिलाकर ३० कुलाचल हैं, इन पर ३० अकृत्रिम चैत्यालय हैं । देवकुरु में ५ व उत्तर कुरु में ५ कुल १० उत्तम भोगभूमियों में १० अकृत्रिम चैत्यालय हैं।
वक्षारगिरि के गजदन्त के
२० कुण्डलगिरि के रुचकगिरि विजयाद्ध के मानुषोत्तर के कुलाचल के इष्वाकार के उत्तरकुरु देवकुरु के १०
३२६+५२ नंदीश्वर के+८० पाँचमेरु के=४५८ मध्यलोक के अकृत्रिम चैत्यालय हैं ।