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विमल जान प्रबोधिनी टीका भावार्थ---जिनका यश सर्वत्र फैल रहा है, ऐसे अनन्तकीर्ति के स्वामी वृषभनाथ, वासुपूज्यजी, नेमिनाथ व महावीर स्वामी को छोड़कर शेष बीस तीर्थकर विशाल, विस्तार को प्राप्त बड़े-बड़े हाथियों से घिरे हुए गिरिराज सम्मेद-शिखर से मोक्ष पुरुषार्थ की उत्तम सिद्धि को प्राप्त हुए ।
अन्य सिद्ध स्थानों से मंगल प्रार्थना शेषाणां केवलिना- मशेषमतवेदिगणभृतां साधूनां । गिरितलविवरदरीसरि-दुरुवनतरु-विटपिजलधि-दहनशिखासु ।। ३४।। मोक्षगतिहेतु-भूत-स्थानानि सुरेन्द्ररुन्द्र भक्तिनुतानि । मंगलभूतान्येता . न्यंगीकृत - धर्मकर्मणामस्माकम् ।। ३५।।
अन्वयार्थ-( शेषाणाम् केवलिनाम् ) तीर्थंकर केवलियों के सिवाय अन्य सामान्य केवली आदि के ( अशेषमतवेदि-गणभृताम् ) सम्पूर्ण मतों के ज्ञाता गणधरों ( साधूनाम् ) मुनियों के ( गिरितल-विवर-दरीसरि-दुरुवनतरुविवर-विटपि-दहन-शिखासु ) पर्वतों के तल/उपरितन प्रदेश, अधस्तन प्रदेश, बिल, गुफा, नदी, विशाल वन, वृक्षों की शाखा, समुद्र तथा अग्नि को ज्वालाओं में ( सुरेन्द्र-रुद्र-भक्ति-नुतानि ) इन्द्रों के द्वारा अत्यधिक भक्ति से स्तुति, नमस्कार को प्राप्त ( मोक्षगति-हेतुभूत-स्थानानि ) मोक्षगति के कारणभूत स्थान हैं ( एतानि ) ये सब ( अङ्गीकृत-धर्मकर्मणां अस्माकम् ) धर्म-कर्म को स्वीकृत करने वाले हमारे ( मङ्गलभूतानि ) मङ्गलस्वरूप हैं ।
भावार्थ-तीर्थंकर केवलियों के अलावा अन्य उपसर्ग केवली, सामान्य केवली अन्तकृत केवली, मूककेवली आदि सर्वकेलियों, समस्त ३६३ अन्य मतों के ज्ञाता गणधर, मुनिवृन्दों के निर्वाण-स्थलों-पर्वतों के शिखर, बिल गुफा, नदी, वन, वृक्षों की शाखा, समुद्र, अग्नि की ज्वालाओं में इन्द्रों के द्वारा स्तुति, नमस्कार को प्राप्त ऐसे समस्त मुक्तिस्थल, जिनकी स्तुति, नमस्कार करने वालों को मुक्ति प्राप्त करने वाली है, धर्म पुरुषार्थ में तत्पर रहने वाले हम भक्तजनों के पापों का क्षय करने में सहायक हों। अर्थात् तीर्थकर मुनियों की निर्वाण-भूमियों की बन्दना-नमस्कार करने से भव्यों के पापों का प्रक्षालम होता है तथा शीघ्र मुक्ति की प्राप्ति होती है । जिनपतययस्तत्-प्रतिमा- स्तदालयास्तनिषधका स्थानानि । ते ताश्च ते च तानि च, भवन्तु भव घात-हेतवो भठ्यानाम् ।। ३६ ।।