Book Title: Vimal Bhakti
Author(s): Syadvatvati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 391
________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका कुमार अवस्था में ( त्रिंशत् वर्षाणि ) तीस वर्षों तक ( अमर-उपनीतभोगान् - भुक्त्वा ) देवों के द्वारा लाये गये भोगों को भोगकर ( सहसाअभिनिबोधितः ) अचानक प्रतिबोध/वैराग्य को प्राप्त हो गये तथा ( अन्येद्युः ) दूसरे दिन ( नानाविध रूपचितां ) विविध प्रकार के चित्रों से चित्रित ( विचित्रकूटोधिचित्र ऊंगे शिले कती विशाल ( पणि-विभूषाम् ) मणियों से विभूषित, सुशोभित ऐसी ( चन्द्रप्रभाख्य-शिविकाम्-आरुह्य ) चन्द्रप्रभा नामक पालकी पर आरोहण करके/ चढ़कर के ( पुरात् विनिष्क्रान्तः ) कुण्डपुर नगर से बाहर निकल गये। ( मार्ग-शिर-कृष्ण-दशमी-हस्तोत्तर-मध्यमाश्रिते सोमे ) मक्सर/मगसिर/ अगहन/मार्गशिर माह में कृष्ण पक्ष की दशमी के शुभ दिन जब चन्द्रमा हस्तोत्तर नक्षत्र पर था, उन्होंने ( षष्ठेन भक्तेन तु अपराह्ने जिनः प्रवव्राज ) दो उपवास का नियम ले अपराह्न काल में जैनेश्वरी निथ दीक्षा को धारण किया। भावार्थ-जन्म से दस अतिशय के धारक १००८ लक्षणों से सुशोभित तीर्थंकर महावीर पृथ्वीतल पर अनन्तगुणों की राशि से सम्पन्न थे। उनके पुण्य की महिमा वर्णनातीत है । कुमार अवस्था के ३० वर्षों पर्यन्त उन्होंने देवों द्वारा लाये गये दिव्य वस्त्र, दिव्य आभूषण, दिव्यभोजन आदि रूप भोगों का उपभोग किया था। तथापि उन भोगों में अरुचि को प्राप्त वे निमित्त पाते ही वैराग्य को प्राप्त हो गये। लौकान्तिक देवों द्वारा उनके वैराग्य की प्रशंसा की गई। तभी दूसरे दिन विविधप्रकार के सुन्दर-सुन्दर चित्रों से मण्डित, शिखरों से सुशोभित, रत्न, मणियों से विभूषित चन्द्रप्रभा नाम की शिविका-पालकी पर बैठकर वीर प्रभु वैरागी बन नगर से बाहर, वन की ओर निकल पड़े तथा अगहन/मगसिर/मार्गशिर माह की कृष्णपक्ष की दसमी तिथि के दिन अपराह्न काल की मंगल बेला में, जब चन्द्रमा हस्तोत्तर नक्षत्र पर स्थित था, दो दिन के उपवास की प्रतिज्ञा कर निम्रन्थ, जैनेश्वरी दीक्षा को प्राप्त हुए । ग्रामपुर खेटकर्वटमटंब घोषाकरान्प्रधिजहार । उप्रैस्तपोविधानैदशवर्षापयमर पूज्यः ।।१०।।

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