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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका सिद्धार्थनृपतितनयो भारतवास्ये विदेहकुण्डपुरे । देव्या प्रियकारिण्यां सुस्वप्नान् संप्रदर्श्य विभुः ।।४।।
अन्वयार्थ—( पुष्पोत्तर-अधीश: ) पुष्पोत्तर विमान का स्वामी ( विभुः ) भगवान महावीर का जीव ( आषाढ-सुसित-षष्ठ्यां ) आषाढ़ शुक्ला षष्ठी के दिन ( शशिनि ) चन्द्रमाँ के ( हस्तोत्तर-मध्यम-आश्रिते ) हस्तोत्तरा नक्षत्र के मध्य स्थित होने पर ( स्वर्गसुख-भुक्त्वा ) स्वर्ग के सुखों को भोगकर ( भारतवास्ये ) भारतवर्ष में ( विदेहकुण्डपुरे ) विदेह क्षेत्र के कुण्डपुर नगर में ( सु-स्वप्नान् संप्रदर्य ) उत्तम स्वनों को दिखाकर ( प्रियकारिण्यां ) प्रियंकारिणी ( देगां । देवी ( सिद्धार्थ-नृपति-तनयः ) सिद्धार्थ राजा का पुत्र होता हुआ ( आयात: ) आया था।
भावार्थ-वर्तमान चौबीसी के अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का जीव पूर्व भव में १६वें अच्युत स्वर्ग के पुष्पोत्तर विमान का स्वामी था। वहाँ २२ सागर की आयुपर्यन्त स्वर्ग के सुखों को भोगकर इसी भरत क्षेत्र बिहार प्रान्त में विदेह देश में कुण्डपुर नामक नगर में राजा सिद्धार्थ की महादेवी प्रियंकारिणी, दूसरा प्रसिद्ध नाम त्रिशला देवी के गर्भ में आया । वह शुभ दिन आषाढ़ शुक्ला षष्ठी का था। इस समय चन्द्रमा हस्त तथा उत्तरा नक्षत्र के मध्य में स्थित था।
गर्भ में आने के पहले पिछली रात्रि में प्रियंकारिणी माता ने शुभफलदायक ऐसे १६ स्वप्न देखे थे—१. सफेद हाथी, २. सुन्दर सफेद बैल, ३. सिंह, ४.कलश करती हुई लक्ष्मी, ५. दो मालाएँ, ६. सूर्य मण्डल, ७. चन्द्र मण्डल ८. मीनयुगल, ९. कनक कलश १०. कमलयुक्त सरोवर, ११. लहरोंयुक्त सागर, १२. सिंहासन, १३. देवविमान, १४, धरणेन्द्र विमान, १५. रत्नों की राशि और १६. निर्धूम अग्नि ।
चैत्रसितपक्षफाल्गुनि शशांकयोगे दिने त्रयोदश्याम् । जज्ञे स्वोच्चस्थेषु ग्रहेषु सौम्येषु शुभलग्ने ।।५।। हस्ताश्रिते शशांके चैत्र ज्योत्स्ने चतुर्दशीदिवसे । पूर्वाह रत्नघटैर्विबुधेन्द्राश्चक्रुरभिषेकम् ।।६।। -महापुराण ग्रन्थ के अनुसार गर्भकल्याणक काल में चन्द्रमा उत्तरामाढा नक्षत्र पर स्थित
था।