Book Title: Vimal Bhakti
Author(s): Syadvatvati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 399
________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ३९५ स्थान को १८ हजार शीलों की पूर्णता को प्राप्त अरिष्टनेमि / नेमिनाथ भगवान् ने अष्टकर्मों का क्षय कर १४वे गुणस्थान में गिरनार पर्वत से प्राप्त किया। अर्थात् नेमिनाथ भगवान् गिरनार पर्वत से मुक्त हुए । पावापुरस्य बहिरुन्नत भूमिदेशे, पद्मकुलवतां सरसां दिमध्ये । श्री वर्द्धमान जिनदेव इति प्रतीतो, निर्वाणमाप भगवान्प्रविधूतपाप्मा ।। २४ ।। अन्वयार्थ - ( पावापुरस्य बहिः ) पावापुर के बाहर ( पद्म-उत्पलकुलवतां ) कमल व कुमुदों से व्याप्त / भरे हुए ( सरसां हि मध्ये ) तालाब के बीच में ही (उन्नतभूमिदेशे ) ऊँचे भूमि प्रदेश पर ( श्रीवर्धमान जिनदेव इति प्रतीतो भगवान् ) श्री वर्धमान इस नाम से प्रसिद्ध भगवान् ने ( प्रविधूतपाप्मा निर्वाणमाप) समस्त पापों का क्षय करके मुक्त अवस्था की प्राप्ति की । भावार्थ - बिहार प्रान्त के पावापुर नगर के बाहर सूर्य की किरणों को प्राप्तकर विकसित होने वाले कमल और चन्द्रमा की शीतल किरणों को पाकर विकसित होने वाले कुमुदों से युक्त विशाल मनोहर तालाब के ठीक मध्य में ऊँचे टीले पर स्थित, केवलज्ञान से शोभा को प्राप्त सर्वाधिक प्रसिद्ध महावीर वर्धमान भगवान् समस्त कर्मों / समस्त पापों का नाश करके मुक्ति को पधारे । शेषास्तु ते जिनवरा जितमोहमल्ला, ज्ञानार्क भूरि किरणैरवभास्य लोकान् । स्थानं परं निरवधारित सौख्यनिष्ठं, सम्मेद पर्वततले समवापुरीशाः ।। २५ ।। अन्वयार्थ ----( जितमोहमल्लाः ) जीत लिया है मोहरूपी मल्ल को जिनने ऐसे ( शेषास्तु ते जिनवरा: ईशा: ) जो शेष तीर्थंकर हैं, भगवान् हैं वे ( ज्ञान- अर्क - भूरि-किरणैः लोकान् अवभास्य ) ज्ञानरूपी सूर्य की अनेकानेक किरणों से लोकों को प्रकाशमान करके ( सम्मेद पर्वत-तले ) सम्मेदाचल पर्वत पर ( निरवधारित-सौख्यनिष्ठं परं स्थानं) अनन्त सुख से व्याप्त उत्कृष्ट स्थान मोक्ष को ( सम् अवापुः ) अच्छी तरह से प्राप्त हुए ।

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