Book Title: Vimal Bhakti
Author(s): Syadvatvati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 405
________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ४०१ करते हैं । बन्दना के फलस्वरूप ये भगवान् हम सबको निर्वाण पद प्रदान करें। गोर्गजोश्वः कपिः कोकः सरोजः स्वस्तिकः शशी। मकरः श्रीयुतो वृक्षो गंडो महिष सूकरौ ।।३।। सेधा वनमृगच्छागाः पाठीनः कलशस्तथा । कच्छपश्चोत्पलं शंखो नागराज केसरी ।।४।। अन्वयार्थ—( गो: गज: अश्वः ) बैल, हाथी, घोड़ा ( कपिः कोक: सोत. स्वस्तिल: शाशी बन्दा सकता, काल माथिया, चन्द्रमा ( मकर:) मगर ( श्रीयुतः वृक्ष ) कल्पवृक्ष ( गण्ड; महिष-शूकरौ ) गेंडा, भैंसा, सुअर { सेधा-वज्र-मृगच्छागा: ) सेही, वज्र, हिरण, बकरा ( पाठीन: कलश: तथा ) मीन तथा कलश ( कच्छप: च उत्पलं ) कछुआ और लाल कमल ( शंख: नागराज: च केसरी ) शंख, सर्प और सिंह ये क्रमश: चौबीस तीर्थकरों के चिह्न हैं। भावार्थ- १. आदि तीर्थंकर ऋषभदेव का बैल, २. अजितनाथजी का हाथी, ३. संभवनाथजी का घोड़ा, ४. अभिनन्दननाथजी का बन्दर, ५. सुमतिनाथजी का चकवा, ६. पद्मप्रभजी का कमल, ७. सुपार्श्वनाथजी का साथिया, ८. चन्द्रप्रभजी का चन्द्रमा, ९, पुष्पपदन्तजी का मगर,. १०,शीतलनाथजी का कल्पवृक्ष, ११. श्रेयांसनाथजी का गेंडा, १२. वासुपूज्यजी का भैंसा, १३. विमलनाथजी का सूकर, १४. अनन्तनाथजी का सेही, १५. धर्मनाथजी का वज्रदण्ड, १६. शान्तिनाथजी का हिरण, १७. कुन्थुनाथजी का बकरा १८. अरनाथजी की मछली, १९. मल्लिनाथ जी का कलश २०. मुनिसुव्रतजी का कछुआ, २१. नमिनाथजी का लाल कमल, २२, नेमिनाथजी का शंख, २३. पार्श्वनाथजी का सर्प और २४. वर्धमान स्वामी का सिंह । इस प्रकार ये चौबीस तीर्थंकरों के चिह्न हैं, इनसे तीर्थंकरों की पहचान होती है। शान्ति कुन्थवर कौरख्या यादवौ नेमिसुनतौ । उग्रनाथौ पार्श्ववीरौ शेषा इक्ष्वाकुवंशजाः ।।५।। अन्वयार्थ--(शान्ति-कुन्थु-अर-कौरव्या ) शान्तिनाथ-कुन्थुनाथ और अरनाथ ये तीन तीर्थङ्कर कुरुवंश में उत्पन्न हुए हैं ( नेमि सुव्रतौ । नेमिनाथ

Loading...

Page Navigation
1 ... 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444