Book Title: Vimal Bhakti
Author(s): Syadvatvati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 410
________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका भवनवासियों के विमानों के अकृत्रिम चैत्यालयों का वर्णन भावनसुर-भवनेषु, द्वासप्तति-शत-सहस्र-संख्याभ्यधिकाः । कोट्यः सप्त प्रोक्ता, भवनानां भूरि-तेजसां भुवनानाम् ।।३।। ____ अन्वयार्थ-( भावनसुर-भवनेषु ) भवनवासी देवों के भवनों में ( भूरितेजसां भवनानाम् ) अत्यधिक तेज से/दीप्ति से युक्त भवनों में ( भुवनानाम् ) चैत्यालय की संख्या ( द्वासप्तति-शतसहस्त्र-संख्याभ्यधिका: सप्तकोट्य: ) बहत्तर लाख संख्या से अधिक सात करोड़ ( प्रोक्ता ) कही गई है। भावार्थ-अधोलोक में भवनवासी देव निवास करते हैं । वहाँ प्रत्येक देव के भवनों में जिन चैत्यालय हैं। अत: वहाँ देवों के भवनों में कुल यालय सात कोड़ महता राव । ये सभी चैत्यालय विशेष तेज व दीप्ति से युक्त हैं। व्यन्तर देवों के अकृत्रिम चैत्यालयों का वर्णन त्रिभुवन - भूत - विभूना, संख्यातीतान्यसंख्य-गुण-युक्तानि । त्रिभुवन-जन-नयन-मनः, प्रियाणिभवनानि भौम-विबुध-नुतानि ।।४।। ___अन्वयार्थ ( असंख्य गुण-युक्तानि ) असंख्यात गुणों से युक्त (त्रिभुवन-जन-नयन-मन: प्रियाणि ) तीन लोक सम्बन्धी जीवों के नेत्र व मन को प्रिय ( भौम-विबुध-नुतानि ) व्यन्तर देवों के द्वारा नमस्कृत ( त्रिभुवन-भूत-विभूनाम् ) तीन लोक के समस्त प्राणियों के नाथ/स्वामी/ विभु श्री जिनेन्द्र देव के ( भवनानि ) अकृत्रिम चैत्यालय ( संख्या-अतीतानि ) संख्यातीत-असंख्यात हैं। ___ भावार्थ-वीतरागता आदि असंख्यात गुणों से प्राणीमात्र के नेत्र व मन को प्रिय लगने वाले, व्यन्तर देवों के द्वारा सदा स्तुति, वन्दना, आराधना किये जाने वाले, ऐसे तीन लोकोंके समस्त जीवों के ईश्वर, अरहन्त भगवान के असंख्यात चैत्यालय व्यन्तर देवों के भवनों में हैं। ज्योतिष्क तथा वैमानिक देवों के अकृत्रिम चैत्यालयों का वर्णन यावन्ति सन्ति कान्त-ज्योति-लोंकाथिदेवताभिनुतानि । कल्पेऽनेक-विकल्पे, कल्पातीतेऽहमिन्द्र-कल्पानल्पे ।।५।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444