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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका अन्वयार्थ ( या ) जो ( सुरसम्पदा आकृष्टिं ) देवों की विभूति का आकर्षण ( मुक्तिश्रिय: वश्यतां ) मुक्ति लक्ष्मी का वशीकरण ( चतुर्गति भुवा विपदाम् उच्चाट ) चारों गतियों में होने वाली विपत्तियों का उच्चाटननाश ( आत्मा-ऐनसां-विद्वेषं ) आत्मा संबंधी पापों का विद्वेष-अभाव ( दुर्गमनेप्रति प्रयतत: स्तम्भ ) दुर्गतियों में जाने वालों का स्तंभन-रोकथाम और ( मोहस्य संमोहनं ) मोह का संमोहन ( विदधते ) करती है। सा पञ्चनमस्क्रियाअक्षरमयी ) वह पञ्चपरमेष्ठी नमस्कार मन्त्र के अक्षर रूप ( आराधना देवता ) आराधना देवी ( पायात् ) मेरी रक्षा करे। ___भावार्थ—पञ्चपरमेष्ठी वाचक अक्षरों से बना हुआ णमोकार मन्त्र महा-आराध्य मंत्र है । इस महामन्त्र की अपूर्व महिमा है। यह एक ही मंत्र आकर्षण, वशीकरण, उच्चाटन, विद्वेषण, स्तम्भन व सम्मोहन मंत्र है। इस महामंत्र की आराधना से देवों को विभूति का आकर्षण होता है अत: यह आकर्षण मंत्र है | आराधक के लिये मोक्ष लक्ष्मी वश हो जाती है अत: यह वशीकरण मन्त्र है। इसकी आराधना से आराधक के चतुगात सबंधी विपत्तियों का नाश होता है अत: यह उच्चाटन मन्त्र है। इस मन्त्र का
आराधक आत्मा के द्वारा होवे राग-द्वेष-मोह आदि पापों को करने से भयभीत हो, उनमें अरति भाव को प्राप्त होता है अत: यह विद्वेषण मन्त्र है। इस मंत्र की आराधना करने वाला नरक-तिर्यश्च दुर्गतियों को जाने का द्वार बन्द हो जाता है, अत: यह स्तम्भन मन्त्र है। इस मंत्र के आराधक पुरुष का मोह स्वयं मूछित हो जाता है अत: संमोहन मन्त्र है । ऐसा महामन्त्र हमारी रक्षा करे।
अनन्तानन्त संसार, संततिच्छेद कारणम् । जिनराजपदाम्भोज, स्मरणं शरणं मम ।।१४।।
अन्वयार्थ ( अनन्तानन्त संसार-सन्ततिच्छेदकारणम् ) अनन्तानन्त संसार की परम्परा को छेदने का कारण ( जिनराज-पदाम्भोज-स्मरणं ) जिनेन्द्रदेव के चरण-कमलों का स्मरण ही ( मम ) मेरा ( शरणं ) शरण
भावार्थ-वीतराग जिनेन्द्रदेव के चरण-कमलों का स्मरण, स्तवन, वन्दन, प्रणमन ही पञ्चपरावर्तन रूप अनन्त संसार की अनादि-कालीन