Book Title: Vimal Bhakti
Author(s): Syadvatvati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 372
________________ बिमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका अन्वयार्थ - (सुरगणैः स्तुत पादपद्मा: ) जिनके चरण-कमल देवों के समूहों से स्तुत हैं तथा ( ये ) जो जन्मादि कल्याणकों के समय ( शक्रादिभिः मुकुट कुण्डलहारर - रत्नैः ) इन्द्रों के द्वारा मुकुट-कुण्डल - कर्णाभरण, हार और रत्नों से ( अभ्यर्चिता: ) पूजित हुए थे ( ते ) वे ( प्रवरवंशजगत् प्रदीपाः । ते उत्कृष्ट वंश तथा तु को प्रकाशित करने वाले ( तीर्थंकरा: जिना: ) तीर्थंकर जिनेन्द्र ( मे) मेरे लिये ( सतत शान्तिकरा भवन्तु ) निरन्तर शान्ति करने वाले होवें । ३६८ भावार्थ जिनके चरण कमल सौ इन्द्रों से वन्दनीय हैं, पञ्चकल्याणक की मंगल बेला में जो विविध आभूषणों के धारक देवों, इन्द्रों आदि के द्वारा पूजित हुए हैं, वे उत्तम वंश में उत्पन्न त्रिजगत् को प्रकाशित करने वाले ऐसे तीर्थंकर शान्तिनाथ भगवान मेरे लिये निरन्तर शान्ति प्रदान करें । उपजाति सम्पूजकानां प्रतिपालकानां, प्रतीन्द्र- सामान्य- तपोधनानाम् । देशस्य राष्ट्रस्य पुरस्य राज्ञः करोतु शान्तिं भगवन्- जिनेन्द्रः ।। १४ । । अन्वयार्थ - ( भगवन् जिनेन्द्रः ) जिनेन्द्र भगवान् ( सम्पूजकानां ) सम्यक् प्रकार से पूजा करने वालों को ( प्रतिपालकानां ) धर्मायत्तनों की रक्षा करने वालों को ( यतीन्द्र - सामान्य- तपोधनानाम् ) मुनीन्द्र आचार्य तथा तपस्वियों को ( देशस्य, राष्ट्रस्य पुरस्य राज्ञः ) देश, राष्ट्र, नगर और राजा को ( शान्ति करोतु ) शान्ति करें । भावार्थ -- हे जिनेन्द्रदेव ! श्रद्धा से आपकी आराधना करने वाले आराधकों को, धर्म के आयतन - देव, शास्त्र, गुरु और तीर्थों की रक्षा करने वालों को, आचार्यों, सामान्य तपस्वियों, मुनियों आदि सर्व संयमियों को, देश, राष्ट्र, नगर, प्रजा सभी को शान्ति प्रदान कीजिये । स्रग्धरा क्षेमं सर्वप्रजानां प्रभवतु, बलवान् धार्मिको भूमिपालः । काले काले च सम्य वितरतु मधवा, व्याधयो यान्तु नाशम् ।। दुर्भिक्षं चौरमारिः क्षणमपि जगतां मास्मभूज्जीव- लोके । जैनेन्द्रं धर्मचक्रं प्रभवतु सततं सर्व सौख्य प्रदायि ।। १५ ।। + -

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