Book Title: Vimal Bhakti
Author(s): Syadvatvati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 354
________________ ३५० विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका का स्वामी ( सताम् गुरुः ) सज्जनों का गुरु है ( न अन्ये च ) और अन्य नहीं। भावार्थ—पूर्णज्ञान, शुद्ध आचरण, परोपदेशक, भव्यों को समीचीन पथ में लगाना, विद्वन्मन्य, विनयवान, मार्दवता, लोकज्ञता, निस्पृहता गुण जिनमें हैं वे मुनियों के स्वामी ही सज्जनों के गुरु आचार्य हो सकते हैं, दूसरे अन्य कोई नहीं। विशुद्धवंशः परमाभिरूपो जितेन्द्रियोधर्मकथाप्रसक्तः । सुखद्धिलाभेष्यविसक्तचित्तो बुधैः सदाचार्य इति प्रशस्तः ।। ८ ।। ___ अन्वयार्थ-जो ( विशुद्धवंशः ) विशुद्ध वंश में उत्पन्न हुए हैं ( परमाभिरुप: ) सुन्दर, सुडौल रूप के धारक हैं ( जितेन्द्रियः ) इन्द्रियविजेता हैं ( धर्मकथाप्रसक्तः ) धर्मकथाओं के उपदेश में रत हैं ( सुखऋद्धि-लाभेषु-विसक्त-चित्तः ) सुख, ऋद्धि/ऐश्वर्य आदि के लाभों में जिनके मन में आसक्ति/इच्छा उत्पन्न नहीं होती है ऐसे यति ( सदाचार्य ) सच्चे आचार्य हैं ( इति ) इस प्रकार ( बुधैः ) बुद्धिमानों के द्वारा ( प्रशस्त: ) कहा गया है। भावार्थ--जो शुद्ध वंश में उत्पन्न हुए हैं, सुन्दर, सुडौल, रूपवान् हैं, इन्द्रियविजेता हैं, धर्म-कथाओं के उपदेशक हैं, सुख, ऋद्धि आदि लाभ में आसक्त रहित हैं ऐसे यति आचार्य हैं ऐसा बुद्धिमानों ने कहा है। विजितमदनकेतुं निर्मलं निर्विकारं, रहितसकलसंगं संयमासक्त चित्तं । सुनयनिपुणभावं ज्ञाततत्त्वप्रपञ्चम्, जननमरणभीतं सद्गुरु नौमि नित्यम् ।। ९ ।। अन्वयार्थ-जिनने ( विजितमदनकेतुं ) कामदेव को ध्वजा को जीत लिया है ( निर्मलं ) शुद्ध हैं ( निर्विकारं ) विकाररहित हैं ( रहितसकल संगं ) समस्त परिग्रह से रहित हैं ( संयमासक्त चित्तम् ) संयम में जिसका चित्त आसक्त है ( सुनयनिपुणभावं ) समीचीन नयों के वर्णन करने में जो चतुर हैं ( ज्ञातत्तत्त्वप्रपंचम् ) जान लिया है तत्त्वों के विस्तार को जिसने ( जननमरणभीतं ) जन्म-मरण से जो भयभीत हैं उन ( सद्गुरु ) सच्चे गुरु को ( नित्यम् ) सदाकाल ( नौमि ) मैं नमस्कार करता हूँ !

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