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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका के लिये पाप-कर्मा की शान्ति, मोक्षमार्ग में बुद्धि का होना आत्मबल की सम्पन्नता और निकट भव्यता अति आवश्यक है।
अञ्चलिका इच्छामि मंते ! चारित्त भत्ति काउस्सग्गो कओ, तस्स आलोचउं सम्मणाणजोयस्स सम्मत्ताहिद्वियस्स, सव्यपहाणस्स, णिव्याणमग्गस्स, कम्मणिज्जरफलस्स, खमाहारस्स, पञ्चमहव्ययसंपण्णस्स, तिगुत्तिगुत्तस्स, पञ्चसमिदिजुत्तस्य, णाणज्झाण साहणस्स, समया इव पवेसयस्स, सम्मचारित्तस्स णिच्चकालं, अच्चेमि, पुज्जेमि, वंदामि, णमस्सामि, दुक्खक्सओ कम्मक्खओ बोहिलाहो सगइगमणं, समाहि-मरणं जिणगुणसंपत्ति होउ मज्झं ।
अर्थ ( मंते ! ) हे भगवन् ! मैंने ( चारितभक्ति काउस्सग्गो कओ) चारित्र-भक्ति सम्बन्धी कायोत्सर्ग किया । ( तस्स आलोचेउं ) उस सम्बन्धी आलोचना करने की ( इच्छामि ) इच्छा करता हूँ । ( सम्मणाणुज्जोयस्स) जो सम्यक्ज्ञान रूप उद्योत/प्रकाश से सहित है ( सम्मताहिडियस्स) सम्यग्दर्शन से अधिष्ठित है ( सव्वपहाणस्स ) सबमें प्रधान है ( णिव्वाणमागस्स ) मोक्षका मार्ग है ( कम्म-णिज्जर-फलस्स) कर्मों की निर्जरा ही जिसका फल है (खमाहारस्स) क्षमा जिसका आधार है ( पंचमहव्वयसंपण्णस्स ) पाँच महाव्रतों से सुशोभित है ( तिगुत्ति-गुत्तस्स ) तीन गुप्तियों से रक्षित है, ( पंचसमिदि-जुत्तस्स ) पाँच समितियों से युक्त है ( णाणज्झाण साहणस्स ) ज्ञान और ध्यान का मुख्य साधन है ( समया इव पवेसयस्स) समता का प्रवेश जिसके अन्तर्गत है, ऐसे ( सम्मचारित्तस्स ) सम्यक्चारित्र की मैं ( सदा ) सदा ( अच्चेमि ) अर्चा करता हूँ ( पुज्जे ) पूजा करता हूँ ( वंदामि ) वन्दना करता हूँ ( णमस्सामि ) नमस्कार करता हूँ ( दुक्खक्खओ ) मेरे दुखों का क्षय हो ( कम्मक्खओ ) कर्मो का क्षय हो, ( बोहिलाहो ) रत्नत्रय की प्राप्ति हो ( सुगइगमणं ) सुगतिमें गमन हो, ( समाहिमरणं ) समाधिमरण हो ( जिणगुणसंपत्ति होऊ मझं ) मुझे जिनेन्द्र देवों के गुणों की संप्राप्ति हो।
भावार्थ हे भगवन् ! चारित्र भक्ति सम्बन्धी कायोत्सर्ग करके उसकी