________________
विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका भावार्थ-हे भगवन् ! मैंने योगिभक्तिसम्बंधी कायोत्सर्ग किया अब उसकी आलोचना करने की इच्छा करता हूँ। जम्बूद्वीप-धातकीखंड द्वीप
और अर्द्ध पुष्कर इस प्रकार अढाई द्वीपों व पाँच भरत, पाँच ऐरावत, पाँच विदेह, १५ कर्मभूमियों में ग्रीष्मऋतु में आतापन योग, वर्षाऋतु में वृक्षमूल योग व शीत ऋतु में अभ्रावकाश योग [ खुले आकाश के नीचे बैठना ] तीनों योगों को धारण करने वाले, मौन धारण करने वाले, वीरासन, एक पार्श्व [ एक कर्वट से सोना ] और कुक्कुटासन [ मुर्गे के समान आसन ] आदि अनेक आसन लगाकर तपश्चरण करने वाले, बेला-बेला २ उपवास तेला-तेला ३ उपवास, पक्षोपवास और इनसे अधिक उपवास करने वाले समस्त मुनिराजों की मैं अर्चा, पूजा, वन्दना, आराधना करता हूँ। इनकी आराधना के फलस्वरूप मेरे दुःखों का क्षय हो, कर्मों का क्षय हो, रत्नत्रय की प्राप्ति हो, उत्तमगति की प्राप्ति हो, समाधिमरण हो और अन्त में जिनेन्द्रदेव के उत्तम गुणों की मुझे प्राप्ति हो।
॥ इति श्रीयोगिभक्तिः ।।