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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका से होती है । संयम को निर्दोष पालना उत्तम है, यदि कदाचित् गृहीतसंयम में कोई दोष हो जावे तो उसे प्रायश्चित, निंदा, गर्दा, आलोचना आदि के द्वारा दूर कर निर्दोषव्रताचरण करना चाहिये । यह चारित्र ही उत्तम सप्तर्द्धि- "बुद्धि-विक्रिया-तप-बल-औषधि-रस-क्षिति" को प्राप्त कराता है । हे भगवन् ! इस चारित्र के आचरण में जो कोई बड़ा भारी घोर अपराध/पाप मुझसे हुआ है वह मेरा दुष्कृत मिथ्या हो। मैं पापों को दूर करने के लिये---निंदा, गर्हा, आलोचना आदि करता हूँ।
चारित्र धारण करने का उपदेश संसार-व्यसनाहतिप्रचलिता, नित्योदय प्रार्थिनः, प्रत्यासन्न विमुक्तयः सुमतयः, शान्तनसः प्राणिनः । मोक्षस्यैव कृतं विशालमतुलं, सोपानमुच्चस्तराम्, आरोहन्तु चरित्र-मुत्तम मिदं, जैनेन्द्र-मोजस्विनः ।।१०।।
अन्वयार्थ जो ( संसार-व्यसन-आहति-प्रचलिता ) जो संसार के कष्टों/दु:खों के प्रहार से भयभीत हैं, (नित्य-उदय-प्रार्थिनः ) निरन्तर, शाश्वत उदय रूप रहने वाली मोक्ष लक्ष्मी की प्राप्ति के लिये प्रार्थना करते हैं ( प्रत्यासन्न विमुक्तयः ) जो आसन्न भव्य हैं अर्थात् निकट भविष्य में मुक्ति को प्राप्त करने वाले हैं ( सुमतयः ) जिनकी बुद्धि रत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग में आकृष्ट होने से उत्तम है ( शान्त ऐनस: ) जिनके पाप-कर्मों का उदय शान्त हो गया है ( ओजस्विनः ) जो तेजस्वी, महाप्रतापी हैं ऐसे ( प्राणिनः ) भव्य प्राणी/भव्य जीव ( मोक्षस्य एव कृतं ) मोक्ष के लिये ही किये गये ( विशालं ) विस्तार को प्राप्त ( अतुलं ) अनुपम ( उच्चैः ) उन्नत ( सोपानम् ) सीढ़ी स्वरूप ( जैनेन्द्रं ) जिनेन्द्रदेव कथित ( इदम् ) इस ( उत्तमम् चारित्रम् ) उत्तम चारित्र पर ( आरोहन्तु तराम् ) अच्छी तरह आरोहण करें ।
भावार्थ-यहाँ स्तुति-कर्ता श्री पूज्यपाद स्वामी भव्यजीवों को सम्बोधन देते हुए प्रेरित कर रहे हैं कि "हे भव्यात्माओं ! यदि तुम संसार के जन्ममरण आदि दुःखों के प्रहार से भयभीत हो शाश्वत सुख की प्राप्ति करना चाहते हो तो जिनेन्द्र भगवान् के द्वारा प्रतिपादित १३ प्रकार के उत्तम चारित्र को अंगीकार करो, यह चारित्र मुक्ति-महल पर पहुँचने के लिये विशाल अनुपम सोपान/सीढ़ी स्वरूप है । इस उत्तम चारित्र सीढ़ी पर चढ़ने