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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
आलोचना करने की इच्छा करता हूँ। जो चारित्र सम्यक्ज्ञानरूप प्रकाश युक्त है, सम्यग्दर्शन से अधिष्ठित हैं; वही मोक्ष का प्रधान कारण व कर्म निर्जरा का मूल नियामक हेतु हैं । १३ प्रकार का यह चारित्र ज्ञान, ध्यान का प्रमुख साधन है । जो चारित्र, आराधक के हृदय में समता का प्रवेश कराता है। ऐसे उस सम्यक्चारित्र की मैं त्रिकाल, अर्चा, पूजा, वन्दना करता हूँ । मेरे दुःखों का क्षय हो, कर्मों का क्षय हो । मुझे रत्नत्रय की प्राप्ति हो, उत्तमगति में गमन हो, समाधिमरण हो, जिनेन्द्रदेव के शाश्वत अनन्त गुणों की प्राप्ति हो ।
।। इति श्री चारित्र भक्ति ।।