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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका प्रतिसमय अर्चना करता हूँ, पूजता हूँ, वन्दना करता हूँ, नमस्कार करता हूँ, मेरे दुण्डों का क्षण हो, कर्मों का नाम है.., बोधि कार्यान् रत्नत्रय की प्राप्ति हो, सुगति में गमन हो और जिनेन्द्र गुण रूप सम्पत्ति मुझे प्राप्त हो ।
इच्छामि भंते ! देवसियं ( राइय) आलोचेउं तत्थ
हे भगवन् ! मैं ( रात्रिक ) दैवसिक सम्बन्धी दोषों की आलोचना करने की इच्छा करता हूँ जैसे
दर्शन प्रतिमा पंचुम्बर सहियाई, सत्तवि वसणाईजो विवज्जेइ ।
सम्मत्तविशुद्ध मई, सो दंसण सावओ भणिओ ।।१।।
जो पाँच उदुम्बर फल-बड़फल, पीपलफल, कठूमर, पाकर और ऊमर सहित सात----१. जुआ खेलना, २. मांस खाना ३. सुरा याने शराब पीना, ४. शिकार करना ५. वेश्यागमन ६. चोरी करना और ७. परस्त्री सेवन करना इनका त्यागी है और सम्यक्त्व से विशुद्धिमति है जिसकी वह प्रथम दर्शन प्रतिमाधारी श्रावक कहलाता है। सम्यक्त्व—सच्चेदेव-शास्त्र-गुरु पर दृढ़ श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है।
व्रत प्रतिमा पंच य अणुव्वयाई, गुणव्ययाइं हवंति तह तिषिण । सिक्खावयाई चत्तारि, जाणं विदियम्मि ठाणम्मि ।।२।।
पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत को पालन करना द्वितीय स्थान व्रत प्रतिमा है।
सामायिक प्रतिमा जिणवयण धम्मवेक्ष्य, परमेद्विजिणयालयाणणिच्चपि ।
जं वंदणं तिआलं, कीरइ सामाइयं तं खु ।।३।। जिनवचन, जिनधर्म, जिन चैत्य, पाँच परमेष्ठी-अरहंत-सिद्ध-आचार्यउपाध्याय और साधु तथा जिन चैत्यालय इन नव देवताओं की प्रतिदिन तीनों कालों में वन्दना करना वह निश्चय से सामायिक प्रतिमा है । बाह्यआभ्यंतर शुद्धि को धारण कर पूर्व अथवा उत्तर दिशा की तरफ मुख कर,