________________
२५३
अनन्त ज्ञान-दर्शन- सुख-वीर्य को धारण करने वाले ( जिनेन्द्रम् ) जिनेन्द्र देव को ( प्रणम्य ) नमस्कार करके मैं ( क्रियाकलापं प्रगट प्रवक्ष्ये ) क्रियाकलाप को प्रकट रूप कहूँगा ।
भावार्थ - चार घातिया कर्मों रहित, अनन्त चतुष्टय के स्वामी जिनेन्द्र / अरहंत देव को मैं नमस्कार करता हूँ ।
।। इति श्री ईर्यापथ भक्ति ।।