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३११ कल्पनीय, ज्ञान अतीत काल, अनागत काल, सिद्धि और उपाध्य इस प्रकार ( चतुर्दश वस्तूनि ) १४ वस्तुएँ हैं ।
भावार्थ - द्वितीय आग्रायणी पूर्व की १४ वस्तुएँ - १. पूर्वान्त, २. अपरान्त, ३. ध्रुव, ४. अध्रुव, ५. च्यवनलब्धि, ६. अध्रुव संप्रणिधि ७. अर्थ ८. भौम, ९. व्रतादिक, ९. सर्वार्थ- कल्पनीय, १०. ज्ञान, ११. अतीत काल १२, अनागत काल १३. सिद्धि और १४ उपाध्य हैं, इन सबको मेरा नमस्कार है ।
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कर्म प्रकृति के २४ अनुयोगों के नाम पञ्चमवस्तु चतुर्थ प्राभृतकस्यानुयोग नामानि । कृतिवेदने तथैव स्पर्शन- कर्मप्रकृतिमेव ।। १८ ।। बन्धन निबन्धन प्रक्रमानुपक्रम मथाभ्युदय मोक्षौ । सङ्क्रमलेश्ये च तथा लेश्यायाः कर्म- परिणामी ।। १९ ।। सात मसातं दीर्घ ह्रस्वं भवधारणीय संज्ञं च १ निघत्तमनिधत्तमभिनौमि ।। २० ।।
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पुरुपुद्गलात्मनाम च सनिकाचित-मनिकाचित- मध्थ कर्मस्थितिकपश्चिमस्कंधौ । अल्पबहुत्वं च यजे तदुद्वाराणां चतुर्विंशम् ।। २१ । ।
अन्वयार्थ--( पञ्चमवस्तु चतुर्थप्राभृतकस्य ) पाँचवीं वस्तु च्यवनलब्धि के चौथे कर्मप्रभृति प्राभृतक के ( अनुयोग नामानि ) अनुयोगों के नाम ( कृतिवेदने) कृति और वेदना ( तथैव स्पर्शन- कर्मप्रकृतिम् एव बन्धन निबन्धन-प्रक्रम- अनुपक्रमम् ) स्पर्शन कर्म, प्रकृति, बन्धन, निबन्धन, प्रक्रम, अनुपक्रम ( अथ ) पश्चात् ( अभ्युदयमोक्षौ ) अभ्युदय व मोक्ष ( च ) और ( संक्रम लेश्ये ) संक्रम व लेश्या ( तथा ) तथा ( लेश्यायाः कर्म- परिणामौ ) लेश्याकर्म व लेश्या परिणाम (च ) और ( सातमसातं दीर्घं - हस्वं भवधारणीय संज्ञं ) सातासात, दीर्घ-हस्त्र, भवधारणीय नाम वाले (च ) तथा ( पुरुपुद्गलात्मनाम ) पुरुपुद्गलात्म नामक (च ) व (निधत्तम् अनिधतम् ) निधत्तानिधत्त ( अथ ) पश्चात् ( सनिकाचितम् अनिकाचिम् ) निकाचित- अनिकाचित ( अथ ) इसके बाद ( कर्मस्थितिक- पश्चिमस्कन्धों ) कर्मस्थिति व पश्चिम स्कन्ध (च ) और ( अल्पबहुत्वं ) अल्पबहुत्व हैं । ( तदद्वाराणां चतुर्विंशम् ) उन
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