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विपल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
३०९ उनमें पूर्वगत १४ प्रकार का कहा गया है। ( अहम् ) मैं { आद्यम् ) सर्वप्रथम ( उत्पादपूर्वम्, आग्रायणीय पुरुवीर्यानुप्रवादं च ) उत्पादपूर्व, आग्रायणीय पूर्व और पुरुवीर्यानुप्रवाद पूर्व को ( ईडे ) नमस्कार करता हूँ। ( तथा ) उसी तरह ( अहम् ) मैं ( अस्ति-नास्ति प्रवादपूर्व, ज्ञानप्रवादसत्य प्रवादम्-आत्मपवादं च ) अस्ति-नास्ति प्रवाद पूर्व, ज्ञानप्रवाद पूर्व, सत्यप्रवाद पूर्व और आत्मप्रवाद पूर्व को भी ( संततं ) सदा/सतत/निरन्तर ( अभिवन्दे ) पूर्णरूपेण मन-वचन-काय से नमस्कार करता हूँ।
( अथ ) उसके पश्चात् मैं ( कर्मप्रवादम्, प्रत्याख्यानामधेयं च, दशमं विद्याधारं पृविद्यानुप्रवादं च ) कर्मप्रवाद पूर्व और प्रत्याख्यान पूर्व तथा जो अनेक विद्याओं का आधार भूत है ऐसे दशवें विद्यानुवाद पूर्व की ( ईडे ) मैं स्तुति करता हूँ।
( अथ ) उसके पश्चात् ( कल्याण नामधेयं ) कल्याणवाद नाम पूर्व (प्राणावायं ) प्राणावाद ( क्रियाविशालं ) क्रियाविशाल ( च ) और ( लोकअग्र-सार-पदम् ) मुक्ति-पद की सारभूत क्रियाओं का आधारभूत ( लोकबिन्दुसारं वन्दे ) लोकबिन्दुसार को मैं वन्दना करता हूँ। ___ भावार्थ उत्पादपूर्व द्रव्यों में उत्पाद-व्यय-धौव्यादि धर्मों का वर्णन करता है । आग्रायणीय पूर्व ७०० सुनय-दुर्नयों द्वारा ६ द्रव्य, ७ तत्त्व, ९ पदार्थों का वर्णन करता है । वीर्यानुवाद, आत्मवीर्य व परवीर्य, उभयकाल, तप, द्रव्य, गुण वीर्य का वर्णन करता है । अस्ति नास्ति पूर्व सप्तभंगी का कथन करता है । ज्ञानप्रवाद आठ ज्ञानों का कथन करता है । सत्यप्रवाद अनेक प्रकार के शब्दों का तथा १० प्रकार के सत्य वचनों का वर्णन करता है । आत्मप्रवाद आत्मा के उपयोग आदि का, कर्मप्रवाद मूलोत्तर कर्म प्रकृतियों के बंध उदयादि का, प्रत्याख्यान पूर्व द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव अपेक्षा त्याग धर्म का, विद्यानुवाद ७०० लघुविद्या, ५०० रोहिणी आदि विद्या तथा महाविद्याओं का, कल्याणवाद तीर्थंकरों के पंचकल्याणको का, प्राणवाद पूर्व वैद्य चिकित्सा आदि से प्राणों की रक्षा के उपाय का, क्रिया-विशाल पूर्व संगीत, छन्द, अलंकार, आदि ७२ कलाओं का तथा बिलोकबिन्दुसारतीन लोक का वर्णन करता है ।