________________
३१८
विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका धर्मकथा आदि की अर्चा, वन्दना आदि करता हूँ | मेरे समस्त दुःखों का क्षय हो, कर्मों का क्षय हो, रत्नत्रय की प्राप्ति हो, सुगति हो, समाधिमरण हो तथा अन्त में मुझे जिनेन्द्र के अनुपम गुणों की प्राप्ति हो ।
।। इति श्री श्रुतभक्ति ।।