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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
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आप सम बनने का इच्छुक, शीघ्र सिद्ध पद की प्राप्ति के लिये आपकी प्रातः मध्याह्न, सायंकाल तीनों सन्ध्याओं वन्दना करता हूँ ।
"क्षेपक श्लोक"
कृत्वा कायोत्सर्ग, चतु- रष्टदोष विरहितं सु परिशुद्धं । अतिभक्ति संप्रयुक्तो, यो वन्दते सो लघु लभते परम सुखम् ।।
अन्वयार्थ - ( यः ) जो जीव ( अतिभक्ति संप्रयुक्तः ) अत्यंत भक्ति से युक्त होकर ( चतुरष्टदोष विरहितं ) ३२ दोषों से रहित हो ( सुपरिशुद्धं ) अत्यन्त निर्मल, अत्यंत विशुद्ध ( कायोत्सर्गं कृत्वा ) कायोत्सर्ग करके ( वंदते ) वन्दना करते हैं ( स लघु लभते परमसुखं ) वह शीघ्र ही अतीन्द्रिय/ मुक्ति सुख को प्राप्त करता हैं ।
भावार्थ --- जो भव्यजीव अत्यंत भक्ति श्रद्धा से प्रेरित हो निर्मल शुद्ध परिणामों से बत्तीस दोष रहित कायोत्सर्ग करके सिद्ध परमेष्ठी को नमस्कार करता हैं, उनकी वन्दना करता वह परम मुक्ति स्थान को प्राप्त हो उत्तम सुखों का भोक्ता होता है।
इच्छामि भंते! सिद्धभक्ति काउस्सग्गो कओ तस्सालोचेउं सम्मणाणसम्पदंसण सम्मचरित्तजुत्ताणं, अट्ठ-विह कम्म विप्प- मुक्काणं, अड्डगुण-सम्पण्णाणं, उठ्ठलोय-मत्ययम्मि पट्टियाणं, तव सिद्धाणं, णयसिद्धाणं, संजम सिद्धाणं, चरित-सिद्धाणं- अतीताणागद- वट्टमाणकालत्तय-सिद्धाणं, सव्व- सिद्धाणं, णिच्चकालं, अच्चेमि, पुज्जेमि, वंदामि, णमस्सामि, दुक्खक्खओ, कम्मक्खओ बोहिलाहो, सुगड़-गमणं, समाहि-मरणं, जिण गुण सम्पत्ति होउ मज्झं ।
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अन्वयार्थ - ( भंते ) हे भगवन (सिद्धभक्ति काउस्सग्गो कओ ) सिद्धभक्ति करके जो कायोत्सर्ग किया ( तस्स आलोचेउं इच्छामि ) उसमें लगे दोषो की आलोचना करने की मैं इच्छा करता हूँ। ( सम्मणाणसम्मदंसण-सम्मचरित्त जुत्ताणं ) जो सिद्ध भगवान सम्यक्ज्ञान, सम्यक्दर्शन और सम्यक् चारित्र से युक्त हैं ( अद्भुविह-कम्म मुक्काणं ) आठ प्रकार के कमों से रहित है (अट्टगुणसंपण्णाणं ) आठ गुणों से सम्पन्न हैं ( उड्डलोय मत्थयम्मि पर्यायाणं ) ऊर्ध्वलोक के मस्तक पर जाकर विराजमान है