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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका तथा पाँच अनुत्तर में ५ इस प्रकार कुल ८४९७०२३ जिनालय हैं उनको मैं नमस्कार करता हूँ।
मध्यलोक में पाँच मेरु संबंधी ८.० जिनालय हैं, तीस कुलाचलों पर ३० जिनालय हैं, वक्षारगिरि के ८०, गजदन्त के २०, चार इष्वाकार पर ४. मानषोत्तर पर ४, एक सौ सत्तर बिजयापर १७०, प्रजम्बूवृक्षों पर ५ और पाँच शाल्मलि वृक्षों पर ५५ जिनमन्दिर स्थित हैं। इस प्रकार नरलोक में कुल ( ८०+३०-८०+२०-४+४+ १७०१५.५= ) ३९८ जिनमन्दिर हैं। तथा नरलोक के बाहर नन्दीश्वर द्वीप में ५२, रुचकगिरि पर ४, कुण्डलगिरि पर ४-३९८.५२। ४.४ ४५८ चैत्यालयों की मैं वन्दना करता हूँ।
अधोलोल :ों श्रननवासी के भूतनों में ७ करोड ७२ लाख चैत्यालय हैं उनमें असुरकुमार के ६४ लाख, नागकुमार के भवनों में ८४ लाख, सुपर्णकुमार के ७२ लाख, द्वीप कुमार के भवनों के ७६ लाख, तथा दिक्कुमार, उदधिकुमार, स्तनितकुमार विद्युत्कुमार, अग्निकुमार इन पाँचों के भवनों में ७६-७६ लाख तथा वायुकुमार के भवनों में ९६ लाख चैत्यालय हैं। उन सबकी मैं वन्दना करता हूँ। अर्थात् तीन लोक स्थित सर्व चैत्यालयों को मैं नमस्कार करता हूँ |
मालिनी अवनितलगतानां कृत्रिमाऽकृत्रिमाणाम्, वनभवनगतानां दिव्य वैमानिकानाम् । इह मनुज-कृत्तानां देव राजार्चितानाम्, जिनवर-निलयानां भावतोऽहं स्मरामि ।।३।।
अन्वयार्थ ( अवनितल-गतानां ) पृथ्वी तल पर स्थित ( कृत्रिमअकृत्रिमाणां) कृत्रिम और अकृत्रिम ( वनभवनगतानां ) व्यन्तर और भवनवासियों के स्थानों पर स्थित ( दिव्य वैमानिकानां ) स्वर्ग के निवासी वैमानिक देवों के विमानों में स्थित तथा ( इह ) यहाँ इस लोक में ( मनुज कृतानां ) मनुष्यों के द्वारा बनवाये गये ( देवराज-अर्चितानां ) इन्द्रों के द्वारा पूजित ( जिनवर-निलयानां ) जिनमन्दिरों का ( अहं ) मैं ( भावत: स्मरामि ) भावपूर्वक स्मरण करता हूँ।