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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
निर्ग्रन्थ पद की वांछा इच्छामि भंते ! इमं णिग्गंथं पवयणं अणुत्तरं केवलियं, पडिपुण्ण, णेगाइयं, सामाइयं, संसुद्ध, सल्लघट्ठाणं, सल्लघत्ताणं, सिद्धिमागं, सेढिमग्गं, खंतिमागं, मुत्तिमग्गं, पमुत्तिमग्गं, मोक्खमग्गं, पमोक्खमग्गं, णिज्जाणमग्गं, णिव्वाणमगर्ग, सव्वदुःखपरिहाणिमग्गं, सुचरियपरिणियाणमग्गं, अवितह, अविसंति-पवयणं, उत्तमं तं सइहामि, तं पत्तियामि, तं रोचेमि, तं फासेमि, इदोत्तरं अण्णं णत्यि, ण भूदं, ण भविस्सदि, णाणेण वा, दंसणेण वा, चरितेण वा, सुत्तेण वा, इदो जीवा सिझंति, बुज्झति, मुच्चेति, परि-णेवास-यतिसञ्च-दुक्खाण-मतकरेंति, पडिवियाणति, समणोमि, संजदोमि, उवरदोमि, उवसंतोमि, उवधि-णियडिमाण-माया-मोसमूरण-मिच्छाणाण-मिच्छा-दसण-मिच्छाचरित्तं च पडिविरदोमि, सम्मणाण-सम्मदंसण-सम्मचरित्तं च रोचेमि, जं जिणवरेहि पण्णत्तो, इत्य मे जो कोई ( राइओ) देवसिओ आचारो अणाचारो तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।
हे भगवन् ! इस निर्मथ लिंग की मैं इच्छा करता हूँ । यह निग्रंथ लिंग मोक्षप्राप्ति का उपाय साक्षात् कारण है । यह अनुत्तर है अर्थात् इस निग्रंथ लिंग से भिन्न दूसरा कोई उत्कृष्ट मोक्षमार्ग नही है। केवली संबंधी अर्थात् केवली कथित है। सम्पूर्ण कर्मों का क्षय करने में समर्थ है नैकायिक अर्थात् रत्नत्रय के निकाय से संबंध रखने वाला है, सामायिक रूप है, परम उदासीनता रूप तथा सर्वसावध योग का अभाव होने से यह ही सामायिक है। शुद्ध हैं। माया-मिथ्या-निदान शल्यों से दुखी जीवों के शल्य का नाश करने वाला है। सिद्धि का मार्ग है, श्रेणी का मार्ग है, शान्ति और क्षमा का मार्ग है, उत्कृष्ट मार्ग है, मोक्ष का मार्ग, अरहंतसिद्ध अवस्था की प्राप्ति का उपाय है, चतुर्गति प्रमण के अभाव का मार्ग है निर्वाण का मार्ग है, सर्व दुखों के नाश का मार्ग है. सुचारित्र के द्वारा निर्वाण-प्राप्ति का मार्ग है, निर्विवाद रूप से निग्रंथ लिंग से मुक्ति होती है, मोक्षार्थी इसी लिंग का आश्रय लेते हैं यह लिंग सर्वज्ञप्रणीत है उस उत्तम लिंग की मैं श्रद्धा करता हूँ, रुचि करता हूँ, उसी को प्राप्त होता हूँ । इससे भित्र अन्य कोई मोक्ष का हेतु नहीं है, न भूत में था और न भविष्य में