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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका । २२७ मेरे द्वारा जो भी आरंभ दिन या रात्रि में मन-वचन-काय या कृत-कारितअनुमोदना से हुआ हो तो उस आरंभत्याग व्रत संबंधी मेरे पाप मिथ्या हों।
यडिक्कमामि भंते ! परिग्गहविरदिपडिमाए:-वत्यमेत्त परिग्गहादो अवरम्मि परिग्गहे मुलापरिणामे जो मे देवसिओ ! रागयो) अइचारो, अणाचारो, मणसा, वचसा, काएण, कदो वा, कारिदो वा, कीरंतो वा, समशुमपिणदो, तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।।९।।
हे भगवन् ! परिग्रहत्याग प्रतिमा के पालन में लगे दोषों का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। परिग्रहत्याग प्रतिमा व्रत में वस्त्रमात्र परिग्रह से भिन्न दूसरे परिग्रह में मूर्छापरिणाम होने से मेरे द्वारा जो भी दिन या रात्रि में अतिचार-अनाचार मन से, वचन से, काय से, कृत-कारित-अनुमोदना से हुआ हो तो व्रत संबंधी मेरा दोष मिथ्या हो । ।
पडिक्कमामि भंते ! अणुमणविरदिपडिमाए जं किं पि अणुमणणं पुट्ठापुढेण कदो वा, कारिदो वा, कीरंतो वा समणुमणिदो, तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।।१०।।
हे भगवन् ! अनुमतिविरत दसवीं प्रतिमा के पालन में लगे दोषों का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। अनुमतित्याग प्रतिमा में जो अन्य के द्वारा पूछने या नहीं पूछने पर भी जो कुछ भी मेरे द्वारा अनुमति दी गई हो, दिलाई गई हो या अनुमोदना की गई हो तो मेरे सभी पाप मिथ्या हों।
पडिक्कमामि भंते ! उहिट्ठविरदिपडिमाए उहिदोस-बहुलं अहोरदियं आहारयं वा आहारावियं वा आहारिज्जंतं वा समणुमण्णिदो, तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।।११।।
हे भगवन् ! मैं उद्दिष्टत्याग ग्यारहवीं प्रतिमा के पालन में लगे दोषों का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ । उद्दिष्टत्याग प्रतिमा व्रत में उद्दिष्ट दोष से युक्त आहार को मैंने किया हो, उद्दिष्ट दोष से दूषित आहार दूसरों को कराया हो या उद्दिष्ट दोष से दूषित आहार को करने की अनुमति दी हो तो उस व्रत संबंधी मेरा पाप मिथ्या हो ।।११॥