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विपस्न ज्ञान प्रबोधिनी टीका
२२५ पडिक्कमामि भंते ! पोसह पडिमाए:-अप्पडि-वेक्खियापमज्जियोसग्गेण वा, अप्पलिवेक्खियापमज्जिया-दाणेण या, अप्पडिदेक्खियापज्जियासंथारोवक्कमणेण वा, आवस्सयाणदरेण वा, सदिअणुवट्ठावणेण वा, जो मए देवसिओ ( राइयो ) अइचारो, मणसा, वचसा काएण, कदो चा, कारिदो वा, कीरंतो वा समणुमण्णिदो, तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।।४।।
हे भगवन् ! चतुर्थ प्रोषध प्रतिमा के पालन करने में लगे दोषों का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। प्रोषध प्रतिमा को पालते हुए जीव-जन्तुओं को बिना देखे ही अथवा भूमि प्रदेश का जीव-जन्तु रहित है या नहीं शोधन किये बिना ही मल-मूत्र का क्षेपण किया हो अथवा पूजा के उपकरण आदि बिना शोधे उपयोग किये हों, बिना देखे शोधी भूमि में ही वस्तु धरी हो और बिना शोधे उपकरण, पुस्तक, पीछी, कमंडलु आदि उपयोगी वस्तुएँ ग्रहण की हो, बिना देखे, बिना शोधे संस्तर, वटाई-पाटा आदि बिछाये हों, देव-पूजा गुरुपास्ति आदि षट् आवश्यक कर्तव्यों में हानि या अनादर किया हो, सामायिक, पूजन, स्तावित का विमाप दिया है
जो भी तो मेरे द्वारा दिन या रात्रि में स्वयं किये गये हों, कराये गये हों या अनुमोदना की गई हो, सामायिक प्रतिमा व्रत संबंधी मेरे पाप मिथ्या हों।
पडिक्कमामि भंते ! सचित्तविरदिपडिमाए:-पुढविकाइया जीवा असंखेज्जासंखेज्जा, आउकाइया जीवा असंखेज्जासंखेज्जा, तेउकाइया जीवा असंखेज्जासंखेज्जा, वाउकाझ्या जीवा असंखेज्जासंखेज्जा, वणफदिकाइआ जीवा अणताणता, हरिया, बीया, अंकुरा, छिपणाभिण्णा, एदेसिं उद्दावणं, परिदावणं, विराहणं, उवधादो, कदो वा, कारिदो वा, कीरतो या, समणुमण्णिदो, तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।।५।।
हे भगवन् ! सचित्तत्याग नामक पंचम प्रतिमा मे लगे दोषों का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ 1 सचित्तविरति त्याग प्रतिमा को पालने में मेरे द्वारा असंख्यातासंख्यात पृथ्वीकायिक जीवों का. असंख्यातासंख्यात जलकायिक जीवों का, असंख्यातासंख्यात तेजस्कायिक ( अग्निकायिक ) जीवों का, असंख्यातासंख्यात वायकायिक जीवों का और अनन्तानंत वनस्पतिकायिक जीवों में हरित, बीज, अंकुर का छेदन-भेदन किया हो, इन जीवों को उत्तापन/त्रास दिया हो, पीड़ित किया हो, विराधन किया हो या उपघात