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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका जीविदासंसणेण वा, मरणासंसणेण वा, मित्ताणुराएण वा, सुहाणुबधेण वा, णिदाणेण वा, जो मए देवसिओ ( राइयो) अइचारो, मणसा, वचसा, काएण, कदो वा, कारिदो वा, कीरंतो वा समणुमषिणदो, तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।।२-१२-४।।
हे भगवन् ! व्रत प्रतिमा में चौथे शिक्षाव्रत समाधिमग्ण व्रत पालन में जीवित रहने की आशा से, शीघ्र मरण की आशा या मरण का भय करना या मैं मर जाऊँगाँ क्या ? आदि परिणामों से संक्लेश रखना, इष्ट- मित्रजनों से प्रेम रखना, सुखानुबन्ध अर्थात् पूर्व में भोगे हुए भोगों का स्मरण करना और व्रतादि का पालनकर सांसारिक सुखों की इच्छा करना रूप निदान से जो भी मेरे द्वारा दिन में या रात्रि में अतिचार मन से, वचन से स्वयं किया गया हो, कराया गया हो या करते हुए की अनुमोदना की गई हो तो समाधिमरण प्रत सम्बन्धी मेरे दोष/पाप मिथ्या हों।
पडिक्कमामि भंते ! सामाइय पडिमाए:-मणुदुप्पणिधाणेण वा, वयदुप्पणिधाणेण वा, कायदुप्पणि-घाणेण वा, अणादरेण वा, सदि अणुबट्ठावणेण वा, जो मए देवसिओ ( राइओ) अइचारो, मणसा, वचसा, काएण, कदो वा, कारिदो वा, कीरंतो वा समणुमणिपदो, तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।।३।।
हे भगवन् ! सामायिक प्रतिमा व्रत पालन में लगे दोषों का मैं प्रतिक्रमण करता है। सामायिक प्रतिमा ( तीसरी )के पालने में मन के दुष्पणिधान अर्थात् मन की अस्थिरता, वचन दुष्पणिधान अर्थात् वचनों के उच्चारण में शीघ्रता या मंदता या अशुद्धि की हो, काय दुष्प्रणिधान अर्थात् काय की चंचलता को हो-एक आसन से निश्चलतापूर्वक बैठकर निर्विकार सामायिक न कर काय की दुष्प्रवृत्ति की हो, शरीर के अंग-उपांगों को चलायमान किया हो, सामायिक अनादर से की हो, सामायिक पाठ का विस्मरण किया हो इत्यादि मेरे द्वारा जो भी कोई दिन या रात्रि में अतिचार मन से, वचन से, काय से स्वयं किया गया हो, कराया गया हो या करते हुए की अनुमोदना की गई हो तो सामायिक व्रत प्रतिमा संबंधी मेरा दुष्कृत/पाप मिथ्या हो।