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विमल सा अबोधिनी टीका
पडिक्कमामि भंते! वद पडिमाएतिदिए गुणव्वदे:- कंदप्पेण वा, कुकुवेएण वा, मोक्खरिएण वा असमखििाय् हिकरणेण वा, भोगोपभोगात्यकेण वा जो मए देवसिओ ( राइयो ) अइचारो मासा, वचसा, कारण, कदो वा, कारिदो वा, कीरंतो वा समणुमणिदो, तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।। २-८-३।।
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हे भगवन्! मैं द्वितीय प्रतिमा तीसरे गुणव्रत अनर्थदण्ड में लगे दोषों का प्रतिक्रमण करता हूँ । अनर्थदण्डविरति व्रत में कंदर्प से अर्थात् राग के उदय स्मित से हँसी से, ठट्ठा से कौतकुच्य अर्थात् कुत्सित भाषण किया हो, शरीर की खोटी चेष्टा की हो, मौखर्य याने बिना प्रयोजन बकवाद किया हो, व्यर्थ संभाषण किया हो, असमीक्ष्याधिकरण याने बिना सोचविचार के कार्य किया हो, भोगोपभोग की सामग्री का अनर्थ बिना प्रयोजन अधिक संग्रह किया हो इस प्रकार मेरे द्वारा दिन में या रात्रि में व्रत संबंधी में जो भी अतिचार मन-वचन-काय - कृत कारित - अनुमोदना से हुए हों तत्संबंधी मेरे दुष्कृत/ पाप मिथ्या हो ?
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पडिक्कमामि भंते! यद पडिमाए पढमे सिक्खायदे: - फासिंदिय भोगपरिमाणाइक्कमणेण वा, रसणिंदियभोगपरिमाणाइक्कमपणेण वा, घाणिदिय भोगपरिमाणाइक्कमणेण वा, चक्खिदियभोगपरिमाणाइक्कमणेण वा सवणिदिय भोगपरिमाणाइक्कमणेण वा, जो मए देवसिओ (राइयो ) अइचारो, मणसा, वचसा, कारण, कदो वा, कारिदो वा, कीरंतो वा समणुमणिदो, तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।। २-९-१।।
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हे भगवन्! द्वितीय व्रतप्रतिमा में प्रथम शिक्षाव्रत में लगे अतिचार आदि दोषों का प्रतिक्रमण करता हूँ । प्रथम शिक्षाव्रत में स्पर्शेन्द्रिय संबंधी भोगपरिमाण के अतिक्रमण से, रसना इन्द्रिय संबंधी भोग परिमाण के अतिक्रमण से, प्राण इन्द्रिय संबंधी भोग परिमाण के अतिक्रमण से, चक्षु इन्द्रिय संबंधी भोग परिमाण के अतिक्रमण से, श्रोत्रेन्द्रिय संबंधी भोग परिमाण के अतिक्रमण से मेरे द्वारा दिन या रात्रि में जो भी व्रत संबंधी अतिचार मन से, वचन से, काय से, कृत, कारित, अनुमोदना से हुआ तत्संबंधी मेरा दुष्कृत्य मिथ्या हो जो एक बार भोगा जाता है वह भोग कहलाता है
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