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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
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एकान्त निर्भय स्थान में १२ आवर्त को करता हुआ चार प्रमाण चारो दिशा में करे और स्थिर मन-वचन-काय से समतापूर्वक सामायिक करें ।
प्रोषध प्रतिमा
उत्तम मज्झ जहणणं, तिविहं पोसहविहाण मुद्दिट्ठ । सगसत्तीएमासम्मि, चउसु पव्वेसु कायष्वं । । ४ । ।
उत्तम, मध्यम और जघन्य तीन प्रकार से प्रोषध विधान कहा गया है । अपनी शक्ति के अनुसार एक माह में चार पर्वो [ दो अष्टमी, दो चतुर्दशी ] में करना चाहिये ।
सचित्तत्याग प्रतिमा
जं वज्जिजदि हरिदं, तय पत्त पवाल कंदफल वीयं ।
अपसुगं च सलिल, सचितणिव्यत्तिमं ठाणं । । ५ । ।
सचित्त वस्तु, हरित अंकुर पत्र, प्रवाल, कंद, फल- बीज और अप्रासुक जलादि का सेवन नहीं करना सो पञ्चम प्रतिमा हैं ।
दिवामैथुनत्याग या रात्रिभोजनत्याग प्रतिमा
मण वचण काय कद, कारिदाणुमोदेहिंमेहुणं णवधा । दिवसम्मि जो विवज्जदि, गुणम्मि जो सावओ छट्टो । । ६ । । मन, वचन, काय, कृत, कारित, अनुमोदना से नवकोटिपूर्वक मैथुन का दिन में त्याग करना सो वह गुणी श्रावक की छठवीं प्रतिमा है ।
ब्रह्मचर्य प्रतिमा
पुष्युत्तणव विहाणं पि, मेहुणं सव्वादा विवज्जंतो । इत्यिकहादि णिवित्ती, सत्तमगुण बंभचारी सो ।।७।।
मन, वचन, काय कृत, कारित, अनुमोदना रूप नव कोटि से हमेशा के लिये स्त्री मात्र का त्याग तथा स्त्री- कथा आदि का भी नवकोटि से त्याग करना सो सप्तम ब्रह्मचर्य प्रतिमा हैं ||७||
आरंभत्याग प्रतिमा
जं किं पि गिहारंभ, बहुथोवं या सया विवज्जेदि । आरंभणिवितमदी, सो अड्डम सावओ भणिओ ||८||