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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
णमोजिणाणं णमोजिणाणं णमोजिणाणं णमो णिस्सिहीए णमो णिस्सिहीए णमो णिस्सिहीए णमोत्थदे परमोत्युदे णमोत्थुदे अरहंत ! सिद्ध ! बुद्ध ! णीरय ! णिम्मल ! सममण ! सुभमण ! सुसमत्य ! समजोग ! समभाव ! सल्लघट्टाणं ! सल्लघत्ताणं ! शिब्भय ! णिराय ! णिहोस ! णिम्मोह ! णिम्मम ! शिस्संग ! सिल्ल ! माणमाय- - मोसमूरण, तवप्पहावण, गुणरयण, सीलसायर, अणंत, अप्पमेय, महदि महावीर वढ्डमाण, बुद्धिरिसिणो चेदि णमोत्यु दे पामोत्थु दे पामोत्यु दे ।
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जिनेन्द्रदेव को तीन बार नमस्कार हो, १७ प्रकार के निषिद्धका स्थानों को नमस्कार हो, नमस्कार हो, नमस्कार हो । चार घाति कर्म के क्षयकारक अरहंत निःशेष कर्म क्षय कारक सिद्ध केवलज्ञानी, कर्म ज्ञानावरणदर्शनावरण की रज से रहित, समताधारक, शुभमन, शुभध्यानधारी परीषह उपसर्गों के सदन में गवाले, मन वाले अरहंतादि को नमस्कार हो, नमस्कार हो, नमस्कार हो ।
हे माया मिथ्या-निदान शल्य के नाशक, संसारी जीवों के शल्य नाशक, निर्भय, रागरहित, निर्दोष, निमोंह, निर्मम, निष्परिग्रह, मायामिथ्या - निदान शल्य रहित, मान, माया और झूठ का मर्दन करने वाले हे तप प्रभावक, हे गुणों के स्वामी गुणरत्न, हे शीलसागर, हे अनन्त चतुष्टय धारक, हे अनन्त, हे अप्रमेय, हे पूजनीय महावीर, हे वर्द्धमान, हे बुद्धर्षिन् ! आपको नमस्कार हो, नमस्कार हो, नमस्कार हो ।
गद्य - मम मंगलं अरहंता य, सिद्धा य, बुद्धा य, जिणा य, केवलिणो, ओहिणाणिणो, मणपज्जयणाणिणो, चउदस पुत्रगामिणो, सुदसमिदिसमिद्धाय, तवोय, वारह विहो तवसी, गुणाय गुणवंतोय, महरिसी तित्यं तित्थंकराय, पवयणं पवग्रणी य णाणं णाणी य, दंसणं दंसणी य, संजयो संजदा य, विणओ विणदा ए, बंभचेरवासो, बंभचारी य, गुत्तीओ, चे गुत्तिमंतो य, मुत्तिओचेव मुत्तिमंतो य, समिदीओ, चेव समिदि मंतो य, सुसमय परसम विदु, खंति खंतिवंतो य, खवगा य, खीणमोहा य खीणवंतो य, बोहिय बुद्धाय, बुद्धिमंतो य, चेझ्यरुक्खाय चेईयाणि ।
अरहंत, सिद्ध, बुद्ध, जिन, केवलज्ञानी अवधिज्ञानी, मन:पर्ययज्ञानी,
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