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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका स्त्री आदि की प्रतिमाओं का नाम लयन कर्म है", उन लयन कर्मों में । शैल का अर्थ पत्थर है, उसमें निर्मित सभी प्रकार की स्त्रियों की प्रतिमाओं का नाम सिल्ल कर्म/ शैल कर्म है६, उन शैल कमों में । गृहों से अभिप्राय गृहादिकों का है, उनमें की गई सभी प्रकार की स्त्रियों की प्रतिमाओं का नाम गृहकर्म है", उन गृहकर्मों में । घोड़ा, हाथी, मनुष्य एवं वराह ( सूकर ) आदि के स्वरूप से निर्मित पर गृहकर्म कहलाते हैं, यह अभिप्राय है । घर की दीवालों में उनसे अभिन्न रची गई स्त्री आदि प्रतिमाओ का नाम भित्तिकर्म है, उन भित्तिकर्मों में । भेद कर्मों में अर्थात् वस्त्र आदि को कैंची से कतर कर बनाये गयी सभी प्रकार की स्त्रियों की प्रतिमाओं का नाम भेद कर्म है; उन भेद कर्मों में 1 भण्डकर्मों याने भांडकर्मों अर्थात् बर्तनों पर सभी प्रकार की स्त्रियों के चित्रों में। धात कर्मों अर्थात् सोना-चाँदी आदि धातुओं पर उकेरे स्त्री चित्रों/प्रतिमाओं में। हाथी दाँतों पर खोदी गयी स्त्री आदि की प्रतिमाओं को दन्त कर्म कहते हैं । उन दन्त कर्मों में अर्थात् हाथी दांतों पर उकेरे गये स्त्रियों के चित्र आदि।
इन अचेतन स्त्रियों के रूपादिक से हाथों का संघर्षण, पैरों का संघर्षण, शरीर के अन्य अवयवों का संघर्षण होने पर, कर्णेन्द्रिय के विषय मनोज्ञअमनोज्ञ शब्दों में, चक्षु इन्द्रिय के विषय मनोज्ञ-अमनोज्ञ रूपों में, घ्राणेन्द्रिय के विषय मनोज्ञ-अमनोज्ञ गंधों में, जिह्वा इन्द्रिय के विषय मनोज्ञ-अमनोज्ञ रसों में, स्पर्शेन्द्रिय के विषय मनोज्ञ-अमनोज्ञ स्पर्श में, चक्षु इन्द्रिय सम्बन्धी विकृत परिणाम में, घ्राण इन्द्रिय सम्बन्धी विकृत परिणाम में, जिव्हा इन्द्रिय सम्बन्धी विकृत परिणामे में, स्पर्श इन्द्रिय सम्बंधी विकृत परिणाम होने पर या मन सम्बन्धी विकृत परिणाम होने पर प्रकट रूप से प्रकट इन्द्रियों के द्वारा न स्वयं अब्रह्म का सेवन करे, न दूसरों के द्वारा अब्रह्म का सेवन करावे और न अन्य अब्रह्म सेवन करते हुए की अनुमोदना करें ।
हे भगवन् ! इस ब्रह्मचर्य महाव्रत के व्रत में लगे अतिचार का निराकरण करने के लिये मैं प्रतिक्रमण करता हूँ, अपनी निन्दा करता हूँ, गर्दा करता हूँ और पूर्व में इस व्रत में मेरे द्वारा जो इस व्रत में अतिचार लगे हैं उनका त्याग करता हूँ। १. धवला पु. ९, पृ. २४९ । २. धवला पु० ९. पृ० २४९ । ३,४,५,६,७,८ वहीं है ।