________________
१८२
विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
अतिप्रकट रूप से अनुष्ठान करना और अनाभोग अर्थात् लज्जा आदि के वश किसी को प्रकट न होने पाये, इस तरह छिपकर अनुष्ठान करना । आदि दोष लगे हैं। हे भगवन् ! उन अतिचारों का प्रतिक्रमण करता हूँ
हुए को
हे भगवन् ! व्रतों का उल्लंघन किया हो, कराया हो, करते अच्छी तरह अनुमोदना की हो, उस अतिचार का ( दोष का ) प्रतिक्रमण करता हूँ, निन्दा करता हूँ, गर्हा करता हूँ, आत्मा से उनका त्याग करता हूँ | जब तक अरहंत भगवान् को मैं नमस्कार करता हूँ, उनकी पर्युपासना करता हूँ, तक तह गाम कर्मस्वरूप हारिन रूप काय से पमन्त का त्याग करता हूँ ।
... णमो लोए सव्यसाहूणं ।। २ ।।
णमो अरहंताणं. णमो अरहंताणं.... . पणमो लोए सव्वसाहूणं । । ३ । । श्रावक के १२ व्रतों के अन्तर्गत पाँच अणुव्रतों का वर्णन
*******
+++
पढमं ताव सुदं मे आउस्संतो ! इह खलु समणेण, भगवदा, महदि, महावीरेण, महाकस्सवेण, सव्वण्डुण, सव्व-लोय-दरसिणा, सावयाणं, सावियाणं, खुड्डुयाणं, खुड्डीयाणं, कारणेण, पंचाणुव्वदाणि, तिणि गुणव्वदाणि चत्तारि सिक्खावदाणि, बारस विहं गिहत्य- धम्मं सम्मं उवदेसियाणि । तत्य इमाणि पंचाणुष्वदाणि पढमे अणुस्वदे थूलयडे पाणादिवादादो वेरमणं, विदिये अणुव्वदे थूलवडे मुसावादादो वेरमणं, तिदिये अणुब्वदे, थूलयडे अदिण्णादाणादो वेरमणं, चउत्थे अणुव्वदे, थूलयडे सदार-संतोस- परदारा-गमण- वेरमणं, कस्स व पुणु सव्वदो विरदी, पंचमे अणुध्वदे, थूलवडे इच्छा कद परिमाणं चेदि, इच्वेदाणि पंच अणुष्वदाणि ।
-
अर्थ – हे आयुष्मानों मैंने [ गौतम ने ] यहाँ निश्चय से पूज्य श्रमण भगवान् महावीर, महाकश्यपगोत्रीय, सर्वज्ञदेव, सर्वलोकदर्शी से सम्यक् प्रकार उपदेशित श्रावक-श्राविका, क्षुल्ल्क- क्षुल्लिकाओं के कारण से पाँच अणुव्रत, तीन गुणवत, चार शिक्षात्रत, इस प्रकार बारह प्रकार के गृहस्थ धर्म को प्रथम सुना है । उन बारह व्रतों में ये पाँच व्रत हैं — प्रथम अहिंसा अणुव्रत में स्थूल प्राणातिपात [ जीवहिंसा ] से विरति, दूसरे सत्त्याणुव्रत में स्थूल असत्य वचनालाप से विरति, तीसरे अचौर्याणुव्रत में अदत्तादान