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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
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१५७ पाषाण, चटाई आदि संबंधी अतिचार का मार्ग के अतिचार का सब अतिचारों का मैं व्रत की विशुद्धि के लिये प्रतिक्रमण करता हूँ । उत्तमार्थ की मुझे प्राप्ति हो और समयग्चारित्र में श्रद्धा हो ।
पहला महाव्रत सब व्रतधारी प्राणियों को सम्यक्त्वपूर्वक हो, दृढ़तापूर्वक हो, उत्तमव्रत हो उसमें मैं समारूढ़ होता हूँ, वह मुझे व शिष्य वर्ग को निर्दोष हों ।
णमो अरहंताणं.. णमो अरहंताणं.. णमो अरहंताणं.
... सबसाहूणं । । १ । । णमो लोए सव्वसाहूणं । । २ । । णमो लोए सव्वसाहूणं । । ३ । ।
प्रथमं महाव्रतं सर्वेषां व्रतधारिणां सम्यक्त्वपूर्वकं, दुवव्रतं, सुखतं,
समारूढं ते मे भवतु । । १ । ।
प्रथमं महाव्रतं सर्वेषां
प्रथमं महाव्रतं सर्वेषां ..........
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से मे भवतु ।। २ । ।
ते मे भवतु || ३ ||
द्वितीय सत्य महाव्रत संबंधी दोषों का प्रतिक्रमण
अहावरे विदिये महत्वदे सव्वं भंते! मुसावादं पच्चक्खामि, जावज्जीवेण तिविहेण मणसा वचसा कारण से कोहेण वा, माणेण वा, मायाए वा, लोहेण वा, रागेण वा, दोसेण वा मोहेण वा, हस्सेण वा भएण या, पदोसेण वा, पमादेण वा, पिम्मेण वा पिवासेण वा, लज्जेण वा, गारवेण वा अणादरेण वा, केण वि कारणेण जादेण वा, शेव सयं मोसं भासेज्ज, णो अपणेहिं मोसं भासाविज्ज, णो अण्णेहिं मोसं भासिज्जनं वि समणुमणिज्ज । तस्स भंते! अइचारं पठिक्क मामि, णिंदामि, गरहामि, अप्पाणं वोस्सरामि ।
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अन्वयार्थ - ( भंते! ) हे भगवन् ! ( अहावरे विदिए महव्वदे ) द्वितीय सत्य महाव्रत में ( मिथ्या सव्वं मुसावादं ) सभी प्रकार के मृषा वचनों का ( मणसा वचसा कारण ) मन से, वचन से, काय से ( जावज्जीवेण पच्चक्खामि ) जीवनपर्यन्त के लिये मैं त्याग करता हूँ। ( से कोहेण वा ) उस सत्य महाव्रत में दूषितता उत्पन्न करने वाले क्रोध से या ( माणेण