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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
त्याग करता हूँ और लोच का अनुष्ठान करता हूँ । स्नान का त्याग करता हूँ और अस्नान का अनुष्ठान करता हूँ । अक्षितिशयन अर्थात् पलंग आदि पर सोने का त्याग करता हूँ, क्षितिशयन का अर्थात् भूमिशयन अनुष्ठान करता हूँ। दन्तधावन का त्याग करता हूँ और अदन्तधावन का अनुष्ठान करता हूँ । अस्थिति भोजन अर्थात् बैठकर अनेक बार भोजन करने का त्याग करता हूँ और खड़े होकर एक बार भोजन अर्थात् स्थिति भोजन का अनुष्ठान करता हूँ । पात्र में भोजन करने का त्याग करता हूँ और करपात्र में भोजन करने का अनुष्ठान करता हूँ। क्रोध का त्याग करता हूँ, क्षमा का अनुष्ठान करता हूँ | मान का त्याग करता हूँ, मार्दव का अनुष्ठान करता हूँ। माया का त्याग करता हूँ और आर्जव का अनुष्ठान करता हूँ । लोभ का त्याग करता हूँ, सन्तोष का अनुष्ठान करता हूँ। कुतप या अतप का त्याग करता हूँ और बारह प्रकार के सुतप का अनुष्ठान करता हूँ । मिथ्यात्व का त्याग करता हूँ, सम्यक्त्व को स्वीकार करता हूँ । कुशील/ अशील का त्याग करता हूँ, सुशील का पालन करता हूँ । शल्य का त्याग करता हूँ, निःशल्य को स्वीकार करता हूँ । अविनय का परित्याग करता हूँ, विनय का पालन करता हूँ। अनाचार का परिवर्जन करता हूँ, सदाचार का परिपालन करता हूँ। उन्मार्ग का परिवर्जन करता हूँ, जिनमार्ग को स्वीकार करता हूँ। अशान्ति का परिवर्जन करता हूँ, शान्ति को स्वीकार करता हूँ। अगुप्ति का त्याग करता हूँ, गुप्ति का समादर करता हूँ । अमुक्ति का त्याग करता हूँ, सुमुक्ति का सुस्वागत करता हूँ । धर्म्यध्यान और 'शुक्लध्यान को समाधि कहते इसके अभाव को असमाधि कहते हैं । असमाधि का परिवर्जन करता हूँ, सुसमाधि को स्वीकार करता हूँ । ममत्व का परिवर्जन करता हूँ, निर्ममत्व को धारण करता हूँ ।
अनादि से संसार में भ्रमण करते हुए मैंने जिन सम्यग्दर्शन आदि की भावना नहीं की, जिनका कभी भी अभ्यास नहीं किया, उसी सम्यग्दर्शन आदि की भावना मैं करता हूँ और जिस मिथ्यात्व आदि में रमता रहा, जिसका आजतक अभ्यास करता रहा उस मिथ्यात्व आदि की भावना का त्याग करता हूँ ।
यह निर्ग्रथ लिंग आगम में मोक्षमार्ग के रूप में कहा गया है। यह