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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
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विराधना अर्थात् रत्नत्रय के विषय में मन-वचन-काय से की गई सावद्यवृत्ति दूषित प्रवृत्ति का त्याग करता हूँ, आराधना अर्थात् रत्नत्रय के विषय में मन-वचन-काय से निर्दोष वृत्ति का अनुसरण करता हूँ। अज्ञान का त्याग करता हूँ अर्थात् कुमति, कुश्रुत और कुअवधि रूप अज्ञान का त्याग करता हूँ और मत्ति - श्रुत- अवधि - - मन:पर्यय और केवलज्ञान रूप सम्यग्ज्ञान का अनुष्ठान करता हूँ। कुदर्शन का त्याग करता हूँ अर्थात् विपरीताभिनिवेश स्वरूप या विपरीत अभिप्रायस्वरूप मिथ्यादर्शन का त्याग आता हूँ तथा तत्क्षणसम्यदर्शन का अनुष्ठान करता हूँ । मिथ्याचारित्र का त्याग करता हूँ और सामायिक आदि सम्यक् रूप चारित्र का अनुष्ठान करता हूँ। पंचाग्नि आदि कुतप का त्याग करता हूँ और बाह्य आभ्यंतर के भेद से १२ भेद रूप तप का अनुष्ठान करता हूँ । नहीं करने योग्य हिंसा आदि अव्रतों का जो अकृत्य है, त्याग करता हूँ और करने योग्य अहिंसा आदि व्रतों का अनुष्ठान करता हूँ। अपने न करने योग्य "अक्रिया" का त्याग करता हूँ और करने योग्य क्रिया ध्यानअध्ययन, समता, स्तुति, वन्दना, प्रतिक्रमण आदि का अनुष्ठान करता हूँ । प्राणों के घात का त्याग करता हूँ और अभयदान का अनुष्ठान करता हूँ । मृषावाद (असत्य वचन) का त्याग करता हूँ और सत्य का अनुष्ठान करता हूँ । अदत्तादान (चोरी) का त्याग करता हूँ और अचौर्य का अनुष्ठान करता हूँ । अब्रह्मचर्य का त्याग करता हूँ और ब्रह्मचर्य का अनुष्ठान करता हूँ । परिग्रह का त्याग करता हूँ और अपरिग्रह का अनुष्ठान करता हूँ । रात्रिभोजन का त्याग करता हूँ और दिन में यथासमय प्राप्त प्रासुक एकभुक्त भोजन का अनुष्ठान करता हूँ। आर्त- रौद्रध्यान संसार के हेतु हैं अतः उनका त्याग करता हूँ और धर्म्यध्यान, शुक्लध्यान मुक्ति के हेतु हैं उनका अनुष्ठान करता हूँ। जीवों को पाप से लिप्त करने वाली कृष्ण-: - नीलकापोत लेश्याओं का त्याग करता हूँ और जीवों को पुण्य कर्म से लिप्त करने वाली पीत-पद्म-शुक्ल लेश्याओं का अनुष्ठान करता हूँ । असि मसि, कृषि आदि व्यापार के आरंभ का त्याग करता हूँ और असि-मसिकृषि व्यापार के अभाव का अनुष्ठान करता हूँ। असंयम का त्याग करता हूँ और संयम का अनुष्ठान करता हूँ। वस्त्रों का त्याग करता हूँ और अचेलत्व को स्वीकार कर निर्बंथपना का अनुष्ठान करता हूँ। अलोच का