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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
११३ की तरह ( छण्हं ) छह प्रकार के ( जीवणिकायाणं विराहणं काऊण ) जीवनिकाय के समूह की विराधना करके ( अपरिसुद्धं ) सदोष, अयोग्य ( भिक्खं ) भिक्षा में ( अण्णं पाणं ) अन्न पान रूप आहार भोजनादि को ( आहारियं ) स्वयं ग्रहण किया हो ( आहारावियं ) दूसरे को कहकर आहार ग्रहण कराया हो ( आहारिज्जत वि ) और आहार करते हुए की भी ( समणुमणिदो ) अनुमोदना की हो ( तस्स ) उस एषणा समिति सम्बन्धी ( दुक्कडं ) दुष्कृत (मे) मेरे (मिच्छा) मिथ्या हो ।
आदान निक्षेपण समिति सम्बन्धी दोषों की आलोचना
तत्य आदाणणिक्खेवण- समिदी चक्कलं वा, फलहं वा, पोत्ययं वा पीढं वा, कमण्डलुं वा, बियांडे वा मणि था, एवमाइ उवयरणं, अप्पडिलेहिऊण- गेण्हंतेण वा, ठवतेण वा, पाण- भूद जीव- सत्ताणं, उवघादो, कदो वा, कारिदो वा, कीरंतो वा, समणुमण्णिदो तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।। १० ।।
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अन्वयार्थ - ( तत्थ ) उन पाँच समितियों में ( आदाणणिक्खेवणसमिंदी ) चतुर्थ आदाननिक्षेपण समिति में ( चक्कलं वा ) चक्कल या ( फलहं वा ) निर्दोष, जीवहिंसा रहित बैठने के लिए फलक / पाट अथवा ( पोत्ययं वा ) ज्ञान का उपकरण शास्त्र या ( कमंडलुं वा ) शौच उपकरण कमण्डलु या (त्रियडिं वा ) विकृति- मलादि रूप विकार या ( मणिं वा ) मणि अर्थात् मणि आदि की जपमाला या ( एवमाइयं ) इत्यादि वस्तु रूप ( उवयरणं ) उपकरणों को ( अप्पडिलेहिऊणगेण्हतेण वा ) पिच्छी आदि के द्वारा प्रतिलेखन न करके उठाते हुए या (ठवंतेण ) धरते हुए मैंने ( पाण- भूद- जीव-सत्ताणं ) प्राण, भूत, जीव और सत्व का ( उवधादो ) उपघात ( कदो वा ) मैंने स्वयं किया हो, या ( कारिंदो वा ) दूसरों से कराया हो या (कीरंतो वा समणुमणिदो ) अथवा करते हुए की अनुमोदना की हो तो ( तस्स ) उस आदाननिक्षेपण समिति सम्बंधी मेरे ( दुक्कडं ) दुष्कृत/ पाप (मिच्छा ) मिथ्या हों ।
प्रतिष्ठापन समिति सम्बन्धी दोषों की आलोचना
तत्व उच्चार पस्सवण खेल सिंहाणय- वियडि - पठ्ठावणिया समिदी
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