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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
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सम्मणाण सम्मदंसण- सम्पचरितं च रोचेमि । जं जिणवरेहिं पण्णत्तो, जो भए पक्खिय ( चाउम्पासिय) (संवच्छारिय) इरयावहि केसलोचाइचारस्त संधारादिचारल्स, पंचादि- चारस्स, सव्वादिचारस्स, उत्तमट्ठस्स सम्मचरितं च रोचेमि ।
पढमे महव्वदे पाणादिवादादो वेरमणं, उवद्वावण - मंडले, महत्थे, महागुणे, महाणुभावे, महाजसे, महापुरिसाणु- चिण्णे, अरहंत सक्खियं, सिद्ध-सक्खियं, साहु सक्खियं, अप्प-सक्खियं, पर सक्खियं, देवतासक्खियं, उत्तमट्ठम्हि । "इदं मे महव्वदं, सुव्वदं, दिढव्वदं होदु, णित्थारयं, पारयं तारयं, आराहियं चावि ते मे भवतु । "
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अन्वयार्थ - ( भंते!) हे भगवन् ! ( तत्थ ) उन पाँच महाव्रतों में ( पढमे महव्वदे ) प्रथम अहिंसा महाव्रत में ( सव्वं ) सब सूक्ष्म और स्थूल (पाणादिवादं ) प्राणातिपात का ( जावज्जीवं ) जीवनपर्यंत ( तिविहेण ) तीन प्रकार ( मणसा, वचिसा, कारण ) मन से, वचन से, काय से ( पच्चवखाभि ) त्याग करता हूँ। (से) वह अहिंसाव्रत संबंधी त्याग ( एइंदिया वा बेइंदिया, तेइंदिया वा, चडरिंदिया वा, पंचिंदिया वा ) एक इन्द्रिय, दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय और पाँच इन्द्रिय ( पुढविकाइए वा आउकाइए वा, तेऊकाइए वा, वाकाइए वा वणप्फदिकाइए वा तस्सकाइए वा ) पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक व त्रसकायिक ( अंडाइए वा, पोदाइए वा, जराइए वा, रसाइए वा, संसेदिमेवा, समुच्छिमे वा, उब्मेदिमे वा, उववादिमे वा ) अंडायिक, पोतायिक, जरायिक, रसायिक, संस्वेदिम, सम्मूर्छिम, उद्भेदिम और उपपादिम ( तसे वा थावरे वा ) स और स्थावर ( बादरे वा सुहुमे वा ) बादर और सूक्ष्म (पाणे वा, भूदेवा, जीवो वा, सत्ते वा ) प्राण भूत जीवे और सत्व { पज्जत्ते वा अपज्जत्ते वा ) पर्याप्त और अपर्याप्त में ( अविचउरासीदिजोणिपमुह-सद- सहस्सेसु ) तथा चौरासी लाख योनि के प्रमुख जीव इनमें ( सयं व पाणादिवादिज्ज ) स्वयं प्राणातिपात अर्थात् प्राणों का घात न करे ( णो अण्णेहिं पाणे अदिवादावेज्ज ) न दूसरों से प्राणों का घात करावे और ( अदिवादिज्जतो वि ण समणुमणिज्ज) प्राणों का घात करने वाले अन्य जीवों की अनुमोदना भी न करे । ( भंते! ) हे भगवन् ! ( तस्स )