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विमल ज्ञान प्रबाधिना टाका कलह, वध, बन्धन, रोध आदि को शान्त करने की शक्ति प्राप्त हुई है। [ सूत्र में अघोर का अकार लोप हो गया है ]
३३. णमो आमोसहिपत्ताणं-आमीषधिजिनों को नमस्कार हो । जिनको आमर्ष अर्थात् स्पर्श औषधपने को प्राप्त है । अर्थात् तप के प्रभाव से जिनका स्पर्श औषधपने को प्राप्त हो गया है उनको आमोषधि जिन कहते हैं, उन्हें नमस्कार हो।
शंका-इन्हें अघोर गुण ब्रह्मचारी जिनों में अन्तर्भाव कर लेना चाहिये ?
उत्तर नहीं । क्योंकि इनके मात्र व्याधि नष्ट करने में ही शक्ति देखी जा सकती हैं।
३४. णमो खेल्लोसहिपत्ताणं-खेल्लोषधि जिनों को नमस्कार हो । श्लेष्म, लार, सिंहाण अर्थात् नासिका मल और विपुत्र आदि की खेल संज्ञा है। जिनका यह खेल औषधित्व को प्राप्त हो गया है।
३५. णमो जल्लोसहिपत्ताणं--जल्लौषधि प्राप्त जिनों को नमस्कार हो । बाह्य अंग-मल जल्ल कहलाता है। जिनका बाह्य अंग मल तप के प्रभाव से औषधिपने को प्राप्त हो गया है वे जल्लौषधि प्राप्त जिन हैं।
३६. णमो वियोसहिपत्ताणं णमो विट्ठोसहिपत्ताणं ( घ.पु.९)विप्नुडौषधि प्राप्त योगियों को नमस्कार हो । विप्नुड् नाम ब्रह्मबिन्दु अर्थात् वीर्य का है, जिनका वीर्य ही औषधिपने को प्राप्त हो गया है उन विप्नुडोषधि प्राप्त योगी जिनों को नमस्कार । दूसरा पाठ है "विट्ठोसहिपत्ताणं" उसका अर्थ है जिनका विष्टा ही औषधरूप को प्राप्त हो गया है उन विष्ठौषधि जिनों को नमस्कार हो।
३७. णमो सयो सहिपत्ताणं--सौषधि जिनों को नमस्कार हो । रस रुधिर, मांस, मेदा, अस्थि, मज्जा शुक्र, फुप्फुस, खरीष, कालेय, मूत्र, पित्त, आँतड़ी, उच्चार अर्थात् मल आदिक सब जिनके औषधिपने को प्राप्त हो गये हैं वे सर्वौषधि जिन हैं।
३८. णमो मणबलीण-मनबल ऋद्धि युक्त जिनों को नमस्कार हो । बारह अंगों में निर्दिष्ट त्रिकालविषयक अनन्त अर्थ व व्यञ्जन पर्यायों से