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जिग्गा नाम प्रोभिटी डीला हिंस्र जीवों से सेवित अटवियो में निवास, कायक्लेशों में जहाँ अति ठंडक या अति गर्मी पड़ती है ऐसे प्रदेशों में, वृक्षमूल में, खुले आकाश आदि में निवास, आतापन योग आदि का ग्रहण करना चाहिये अर्थात् जो इस प्रकार बाह्य में उत्कृष्ट तप करते हैं। जिन्हें देखते ही कायर जीव भय को प्राप्त होते हैं। ऐसे ही अन्तरंग में भी कठोर तप को धारण करने वाले घोर तप ऋद्धि के धारक जिनों को नमस्कार हो ।
३०. णमो घोर गुणाणं-घोरगुण जिनों को नमस्कार हो । घोर अर्थात् रौद्र हैं गुण जिनके वे घोरगुण कहे जाते हैं।
शंका-चौरासी लाख गुणों के घोरत्व कैसे संभव है ?
समाधान-घोर कार्यकारी शक्ति को उत्पन्न करने के कारण उनको घोरत्न संभव है। जिन शब्द की अनुवृत्ति होने से यहाँ घोरत्व अपेक्षा अतिप्रसंग दोष नहीं आता है।
३१. णमो घोर परक्कमाणं-घोर पराक्रम ऋद्धिधारक जिनों को नमस्कार हो। तीन लोक का उपसंहार करने, पृथ्वीतल को निगलने, समस्त समुद्र के जल को सुखाने, जल, अग्नि तथा शिला पर्वतादि को बरसाने की शक्ति का नाम घोरपराक्रम है। यहाँ 'जिन" शब्द की अनवृत्ति होने से कर कर्म करने वाले आसरों को नमस्कार का अतिप्रसंग प्राप्त नहीं होता। क्योंकि जलादि सखाने एवं अग्नि, शिलादि वर्षा की शक्ति देवगति के देवों में भी पाई जाती है।
प्र०–घोर गुण और घोर पराक्रम में क्या अन्तर है ?
उ०-गुण और पराक्रम दोनों में एकत्व नहीं है, क्योंकि गुण से उत्पन्न हुई शक्ति को पराक्रम कहते हैं । गुण कारण हैं पराक्रम उसका कार्य है।
३२. णमोऽधोरगुणबंभयारीणं--उन अघोर गुण ब्रह्मचारी जिनों को नमस्कार हो । ब्रह्म का अर्थ १३ प्रकार का चारित्र है। क्योंकि यह चारित्र शांति का पोषण करने में हेतु है। अघोर अर्थात् शान्त हैं गुण जिसमें वह अघोरगुण है अघोर ब्रह्म का आचरण करने वाले अघोरगुणब्रह्मचारी कहलाते हैं। जिनको तप के प्रभाव से डमरी, ईति, रोग, दुर्भिक्ष, वैर,