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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका आभोग ( अणाभोगो ) अनाभोग ( जो ) जो हुआ ( तं ) उसका ( पडिक्कमामि ) मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। ( मए पडिक्कंतं तस्स ) व्रत संबंधी दोषों का प्रतिक्रमण मेरे द्वारा किया गया ( मे सम्मत्तमरणं ) मेरा सम्यक्मरण हो, ( पंडिय मरणं ) पंडित मरण हो ( वीरिय मरणं ) वीर मरण हो ( दुक्खक्खओ) दु:खो का क्षय हो, ( कम्मक्खओ ) कर्मों का क्षय हो ( बोहिलाहो ) बोधिलाभ हो ( सुगइ-गमणं ) सुगति में गमन हो ( समाहिमरणं ) समाधिमरण हो ( जिनगुण सम्पत्ति होदु मझं ) जिनेन्द्र गुणों की सम्पत्ति मुझे प्राप्त हो ।।
दो भेद रूप आर्त्त-रौद्रध्यानमय संक्लेश परिणामों में माया, मिथ्या, निदान रूप तीन अशुभ परिणामों में पिथ्यादर्शन, ज्ञान, चारित्रों में । मनुष्यकृत, देवकृत, तिर्यंचकृत और अचेतनकृत चार प्रकार के अशुभ परिणामों में, आहार, भय, मैथुन और परिग्रह चार संज्ञाओं में । चार प्रकार आस्रव-मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योगों में | यहाँ ध्यान देने सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्म-साम्पराय और यथाख्यात पाँच प्रकार के चारित्रों में | पाँच स्थावर और एक बस ऐसे छह जीव निकायों में । समता, वंदना, स्तुति, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और कायोत्सर्ग इन छह आवश्यकों में । सात भयों में
मनोवाक्कायप्रेक्ष्ये, सूत्सर्गे शयनासने ।
विनये च यतेः शुन्धिः, शुद्धयष्टकमुदाहदम् ।। मन, वचन, काय, भिक्षा, उत्सर्ग, शयनासन और विनय इन आठ प्रकार की शुद्धियों में । तिर्यंच, मनुष्य, देवस्त्रियों का प्रत्येक मन-वचनकाय से सेवन नहीं करने रूप नव प्रकार की ब्रह्मचर्य गुप्तियों में । दस प्रकार के श्रमण धर्मों में । अपायविचय, उपायविचय, विपाकविचय, आज्ञाविचय, संस्थानविचय, संसारविचय, विरागविचय, लोकविचय, भवविचय, जीवविचय दस प्रकार के धर्म्यध्यानों में । पाँच इन्द्रिय, वचन, हाथ, पाँव शरीर, और मन को निरोध करने रूप मुंडों में
पंचवि इंदिय मुंडा, वचि मुंडा हत्य-पाय-तणुमुंडा ।
मणमुण्डेण य सहिया, दसमुंडा विष्णदा समये ।। छह प्रकार का इन्द्रिय संयम और छह प्रकार का प्राणी संयम इस