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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
दोसेण, पाण- भूद जीव- सत्ताणं, उवघादो, कदो वा, कारिदो वा, था, समणुमणिदो तस्स मिच्छा मे दुक्कडं । ७॥
कीरंतो
अन्वयार्थ – ( पंचसमिदीओ) समितियाँ पाँच हैं ( इरियासमिदी ) ईर्यासमिति ( भासासमिदी ) भाषा समिति (एसणासमिदी ) एषणा समिति ( आदाणणिक्खेवणसमिदी ) आदाननिक्षेपण समिति (च ) और ( उच्चारपरसवण- खेल - सिंहाणयवियडि पइट्टावणसमिंदी) उच्चार - प्रस्रवण- वेलसिंहाण - विकृति - प्रतिष्ठापना समिति ( तत्थ ) उन पाँच समितियों में ( इरियासमिदी ) ईर्यासमिति - प्राणी पीड़ा के परिहार के लिये विवेकपूर्वक प्रवृत्ति । [ अथवा ईरणमीर्या गमनं ] | इस ईर्या समिति में ( पुब्वुत्तर) पूर्व और उत्तर ( दक्खिण पश्चिम चउदिसि ) दक्षिण-पश्चिम चार दिशाओं में विदिसासु) चार विदिशाओं- वायव्य, ईशान, नैऋत और आग्नेय इनमें ( विहरमाणेण ) विहार करते हुए मुझे ( जुगंतर दिट्टिणा दडव्वा ) को चार हाथ प्रमाण सामने भूमि को देखकर चलना चाहिये किन्तु ( पमाददोसेण ) इस ईर्ष्या समिति में सावधान न रहकर प्रमादवश ( डव डव - चरियाए ) अति जल्दी ऊपर मुख करके इधर-उधर गमन करते हुए ( पाण ) विकलेन्द्रिय जीव ( भूद ) वनस्पतिकायिक जीव (जीव ) पञ्चेन्द्रिय जीव ( सत्ताणं ) पृथ्वी, जल, अग्नि, वायुकायिक जीवों का ( उवघादो ) एकदेश या पूर्ण धात (कदो वा ) मैंने स्वयं किया हो या ( कारिदो वा ) कराया हो अथवा (कीरंतो वा, समणु-मण्णिदो ) अथवा करते हुए की अनुमोदना की हो ( तस्स ) ईयासमिति संबंधी ( मे) मेरे ( दुक्कडं ) पाप (मिच्छा ) मिथ्या हों ।
भाषा समिति सम्बन्धी दोषों की आलोचना
तत्य भासासमिदी कक्कसा, कडुवा, परुसा, णिड्डुरा, परकोहिणी, मज्झकिसा, अड़ - माणिणी, अणयंकरा, छेयंकरा, भूयाण वहंकरा चेदि । दसविहा भासा, भासिया, भासाविया, भासिज्जतो वि समणुमणिदो तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ||८||
अन्वयार्थ - ( तत्थ भासासमिदी ) उनमें भाषा समिति दस प्रकार की है। उन्हीं दस भेदों को कर्कश आदि रूप में आगे कहा जाता है