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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका परिसंघाय-पडियत्तिएण, अच्छा-कारिदं मिच्छा-मेलिदं, आ- मेलिदं, बा- मेलिदं, अण्णहा-दिण्णं, अण्णहा-पडिच्छिदं, आवास-एसपरिहोणदाग, अदो था, कारिदो ठा, कीरंटो वा. समणु-मण्णिदो तस्स मिच्छा मे दुक्कडं।
अन्वयार्थ ( भंते ! ) हे भगवन ! ( पडिक्कमादिचारं ) प्रतिक्रमण संबंधी अतिचारों की ( आलोचे3 ) आलोचना करने की ( इच्छामि ) मैं इच्छा करता हूँ। ( सम्मणाण सम्मदंसण-सम्मचरित्त-तव-वीरियाचारेसु ) ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार ( जम-णियमसंजम-शील-मूलुतरगुणेसु ) यम-नियम-संयम-शील-मूलगुण और उत्तरगुणों में होने वाले ( सव्वं ) समस्त ( अइयारं ) अतिचारों व ( सावज्जोगं) सावधयोग से ( पडिविरदोमि ) विरत होता हूँ, त्याग करता हूँ | ( असंखेज्जलोगअज्झवसायठाणाणि ) असंख्यात लोक प्रमाण अध्यवसाय स्थान ( अप्पसत्थजोगसण्णा शिंदियकसायगारवक्रिरियासु ) अप्रशस्तयोग, संशा, इन्द्रिय, कषाय और गारन क्रियाओं में ( मणबयण कायकरणदुप्पणिहाणाणिपरिचिंतियाणि ) मन-वचन-काय का दुष्प्रणिधान हुआ हो, या अशुभ चिंतन किया हो ( किण्हणीलकाउलेस्साओ) कृष्ण, नील, कापोत लेश्याओं में ( विकहापालिकुंचिएण) विकथा में अनुरक्त हुआ हो ( उम्मग्ग हस्सरदि अरदिसोयभयदुगंछ वेयणविजंभजभाइआणि ) उन्मार्ग, हास्य, रति अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, मुँहफाड़कर जंभाई लेना ( अट्ठरुद्दसंकिलेसपरिणामाणि परिणामदाणि ) आर्त्त-रौद्र रूप संक्लेश परिणाम में परिणमित किया हो ( अणिहुदकरचरणमणक्यणकायकरणेन ) अनिभृत/चंचल हाथ-पैर-मन-वचन-काय की प्रवृत्ति करने से ( अक्खित्तबहुलपरायणेण ) इन्द्रिय विषयों में अति प्रवृत्ति करने या लम्पटता होने से ( अपडिपुण्णेण ) अपरिपूर्णता से ( वा ) अथवा ( सरक्खरावयपरिसंघायपडिवत्तिएण ) स्वर, व्यञ्जन, पद और परिसंघात में अन्यथा प्रवृत्ति करने से ( वा ) अथवा ( अच्छाकारिदं ) शीघ्र उच्चारण किया हो ( वा ) अथवा ( मिच्छा- मेलिदं ) मिथ्या मिलाया हो अर्थात् पदच्छेदादि संबंध रहित दूसरे अक्षर मिलाकर पढ़ा हो ( आमेलिदं वा ) अथवा अक्षरों या छन्दों को इधर-उधर मिलाकर पढ़ा हो, जैसा “दशरामसरा" को दशरा-मसरा पढ़ना