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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
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घोसे वा, आसमे वा, सहाए वा संवाहे वा, सण्णिवेसे वा, तिन्हं वा, कडुं वा, वियडिं वा मणिं वा, एवमाइयं अदिण्णं गिहियं, गेण्हावियं, गेहिज्जेते वि समणुमण्णिदो तस्स मिच्छा मे दुक्कडं । । ३ । ।
अन्वयार्थ - ( आहावरे ) अब अन्य ( तिदिये ) तीसरे ( अदिष्णदाणादो ) अदत्तादान से ( वेरमणं ) विरक्त होता हूँ अर्थात् तीसरे महाव्रत में उस ( महव्वदे ) महाव्रत में वस्तु के स्वामी या किसी के द्वारा नहीं दी गई वस्तु का ग्रहण करने से विरक्त होना चाहिये । ( से ) वह अदनादान (गामे वा ) ग्राम में या ( पसरे वा ) नगर में या ( खेड़े वा ) खेट में या ( कव्वड़े वा ) कर्वट में या ( मडवे वा ) मंडल में या ( पट्टणे वा ) पत्तन में या ( दोणमुहे वा ) द्रोणमुखे या ( घोसे वा ) घोष में या ( आसमे ) आश्रम में या ( सहाए वा ) सभा मे या ( संवाहे वा ) संवाह में या ( सण्णवेसे वा ) सन्निवेश में ( तिणं वा) तृण ग्रहण में या ( कट्टु वा ) काल के ग्रहण मं हो या ( विर्याडं वा ) विकृति में हुआ हो ( हुआ वा ) मणि आदि के ग्रहण में हुआ हो ( एवमाइये ) इस प्रकार ( अदत्त गिहियं ) बिना दी गई वस्तु को ग्रहण किया हो ( गेण्हावियं ) ग्रहण कराया हो (गेहजंत समणुर्माणदो ) ग्रहण करते हुए की अनुमोदना की हो ( तस्स ) तत्संबंधी (मे) मेरे ( दुक्कडं ) दुष्कृत (मिच्छा ) मिथ्या हो ।
चतुर्थ ब्रह्मचर्य महाव्रत के दोषों की आलोचना
अहावरे चउत्थे महव्वदे मेहुणादो वेरमणं से देविएस वा, माणुसिएस वा, तेरिच्छिएसुवा, अचेयणिएसुवा, मणुष्णा मणुष्णेसु रूवेसु, मणुण्णा मणुण्णेसु ससु, मणुण्णामणुण्णेस गंधेसु, मणुण्णा मणुण्णेसु रसेसु, मणुष्णामणुण्णेसु फासेसु, चक्खिदिय परिणामे, सोदिदिय परिणामे, घाणिदिय परिणामे, जिब्धिंदिय परिणामे, फासिंदिय परिणामे, णो-इंदियपरिणामे, अगुत्रेण अगुचिंदिएण णवविहं बंभचरियं, ण रक्खियं, ण रक्खावियं ण रक्खिज्जतो वि समणुमणिदो तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।।४।।
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अन्वयार्थ - ( अहावरे ) अब अन्य ( चउत्थे ) चौथे ( महव्वदे ) महाव्रत में ( मेहुणादो ) मैथुन से ( वेरमणं ) विरक्त होना चाहिये ( से )