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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका अन्वयार्थ—( तव सिद्धे ) तप से सिद्ध ( णय सिद्धे ) नय से सिद्ध ( संजमसिद्धे) संयम से सिद्ध (य) और ( चरित्तसिद्धे ) चारित्र से सिद्ध ( णाणम्हिसिद्धे ) ज्ञान से सिद्ध ( य ) तथा ( दसणम्हिसिद्धे ) दर्शन से सिद्ध, सब सिद्ध भगवन्तों को ( सिरसा ) मस्तक से अर्थात् मस्तक झुकाकर ( णमस्सामि ) मैं नमस्कार करता हूँ।
अञ्चलिका इच्छामि भंते ! सिद्धत्ति काउस्सग्गो को तस्सालोचेउं सम्मणाण सम्मदंसण-सम्मचरित्त-जुत्ताणं, अडविह-कम्प-विप्पमुक्काणं, अडगुण संपण्णाणं, लोय-मत्ययम्मि पयट्ठियाणं, तव सिद्धाणं, णय सिद्धाणं, संयम सिद्धाणं, चरित्तसिद्धाणं, अतीताणागद-वट्टमाण-कालत्तय-सिद्धाणं सव्व-सिद्धाणं, णिच्चकालं अच्चमि, पुज्जमि, वंदामि, णमस्सामि दुक्खक्खओ कम्मक्खओ, बोहिलाओ सुगइगमणं समाहि-मरणं जिणगुण-संपत्ति होउ मज्झं। [ अञ्चलिका का अर्थ पूर्व में दिया जा चुका है ]
गद्य नमोऽस्तु आचार्य बन्दनायां प्रतिष्ठापन श्रुत- भक्ति कायोत्सर्ग करोम्यहम् । ( ९ जाप्य)
अर्थ हे आचार्य परमेष्ठी भगवन् ! नमस्कार हो, मैं आचार्य वन्दना में प्रतिठापन श्रुतभक्ति संबंधी कायोत्सर्ग करता हूँ, ऐसी प्रतिज्ञा करके ९ बार णमोकार मंत्र का जाप्य कर निम्नलिखित श्रुतभक्ति का पाठ करेंकोटी-शतं द्वादश चैव कोट्यो, लक्षाण्यशीति-त्र्यधिकानि चैव । पंचाश-दष्टौ च सहस्त्र-संख्य-मेतच्छ्तं पंचपदं नमामि ।।१।। अरहंत-भासियत्थं गणहर-देवेहि गंथियं सम्मं । पणमामि भत्तिजुत्तो सुद-णाण-महोवहिं सिरसा ।।२।।
अन्वयार्थ----( कोटी शतं ) सौ करोड़ ( द्वादशचैवकोट्यो ) और बारह करोड़ ( अशीतिलक्षाणि ) अस्सी लाख ( च ) और ( त्रि अधिकानि ) तीन लाख अधिक ( एव ) तथा ( पंचाशत् अष्टौ ) अठ्ठावन ( सहस्रसंख्य )